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''हिंदी'' की हिमायत पर कमल हासन को आपत्‍ति, बोले- ''कोई शाह, सुल्तान या सम्राट अचानक वादा नहीं तोड़ सकता''

[Edited By: Admin]

Monday, 16th September , 2019 05:47 pm

अभिनय से राजनीति में आए कमल हासन ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के ‘एक देश, एक भाषा’ वाले बयान पर आपत्ति जताई है। कमल हासन ने अपने ऑफिशियल ट्विटर हैंडल से एक वीडियो ट्वीट किया है। वीडियो शेयर करते हुए कैप्शन में कमल हासन ने लिखा है कि कोई भी नया कानून या स्कीम लाने से पहले आम लोगों से बात करनी चाहिए। करीब डेढ़ मिनट लंबे वीडियो में कमल हासन ने कहा कि कोई शाह, सुल्तान या सम्राट अचानक वादा नहीं तोड़ सकता है। 1950 में जब भारत (India) गणतंत्र बना तो ये वादा किया गया था कि हर क्षेत्र की भाषा और कल्चर का सम्मान किया जाएगा और उन्हें सुरक्षित रखा जाएगा।

कमल हासन ने कहा कि भारत ऐसा देश है जहां लोग एक साथ बैठकर खाते हैं, किसी पर कुछ थोपा नहीं जा सकता है। उन्होंने कहा कि जलीकट्टू के लिए जो हुआ वह सिर्फ एक प्रदर्शन था, लेकिन भाषा को बचाने के लिए जो होगा वह इससे बड़ा होगा।

उन्‍होंने सख्‍त लहजे में चेतावनी देते हुए कहा- ‘हमारी मातृभाषा तमिल ही रहेगी।’ 14 सितंबर को हिंदी दिवस के मौके पर गृहमंत्री ने अपने संबोधन में हिंदी को देश की भाषा बनाने की बात कहते हुए ‘एक देश एक भाषा’ की वकालत की थी। इसके बाद कर्नाटक व तमिलनाडु में काफी विरोध प्रदर्शन हुए। दक्षिण भारत से जताए गए विरोधों व आपत्‍तियों में दक्षिण भारतीय नेताओं ने गृहमंत्री के इस बयान पर आपत्‍ति जताते हुए कहा, ‘हिंदी को जबरन न थोपा जाए।’

कमल हासन ने वीडियो अपलोड कर अपना विरोध जाहिर किया है। इसमें उन्‍होंने कहा है कि भाषा के लिए विरोध प्रदर्शन होंगे जो तमिलनाडु के जल्‍लीकट्टू की तुलना में बड़ा होगा।

वीडियो में कमल हासन अशोक स्‍तंभ के पास खड़े हैं। इसमें उन्‍होंने कहा है कि भारत 1950 में इस वादे के साथ गणतंत्र बना कि इसकी भाषा और संस्‍कृति संरक्षित रखी जाएगी। एक राष्ट्र, एक भाषा के खिलाफ चेतावनी देते हुए उन्होंने कहा कि कोई शाह, सुल्तान या सम्राट उस वादे को नहीं तोड़ सकता। हम सभी भाषाओं का सम्मान करते हैं लेकिन हमारी मातृ भाषा हमेशा तमिल रहेगी। उन्‍होंने आगे कहा कि जल्‍लीकट्टू मात्र विरोध प्रदर्शन था। हमारी भाषा के लिए जंग उससे बड़ी होगी।

जल्‍लीकट्टू क्‍या है?

पोंगल पर्व के अवसर पर तमिलनाडु में जल्‍लीकट्टू का आयोजन होता है। यहां का यह पारंपरिक खेल है जिसमें बैलों को काबू में किया जाता है। लेकिन इस खेल में कई लोगों की जान चली जाती है इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में जल्लीकट्टू पर रोक लगा दी थी। कोर्ट का तर्क था कि इस दौरान पशुओं पर क्रूरता की जाती है। लेकिन राज्‍य में इसे जारी रखने के लिए व्‍यापक प्रदर्शन किया गया। इसके बाद राज्य सरकार ने एक अध्यादेश पारित कर इस पारंपरिक खेल को जारी रखने की इजाजत दे दी थी।

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