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भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था बना

[Edited By: Rajendra]

Saturday, 3rd September , 2022 05:23 pm

भारत ने एक दशक में पूरी कहानी पलट दी है। जिन अंग्रेजों ने 200 साल तक भारत पर हुकूमत की, उन्‍हें इस छोटे से वक्‍त में हमने धूल चटा दी है। भारत दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था बन गया है। उसने ब्रिटेन को पीछे छोड़ दिया है। गुजरे 10 सालों में उसने 11वें पायदान से यहां तक का सफर तय किया है। यह हर लिहाज से शानदार और फख्र करने वाला है। अब भारत से आगे सिर्फ अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी रह गए हैं। यह ब्रिटेन के लिए बड़ा झटका है। 75 साल पहले जब देश आजाद हुआ था तब अंग्रेजों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उसकी कॉलोनी उसे खिसकाकर 5 लीडिंग इकनॉमी में जगह बनाएगी। आज दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍थाएं हांफ रही हैं। उस वक्‍त भारत विकास के र‍थ पर सवार है। मंदी की बात तो बहुत दूर है। वह अपने लिए बड़े लक्ष्‍य रख रहा है। हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2047 तक भारत को विकसित बनाने का टारगेट फिक्‍स किया है। जब ऐसे बड़े लक्ष्‍य रखे जाते हैं तभी देश बड़ी बुलंदियों को भी छूता है।

ब्रिटेन को पीछे छोड़ने की खबर ऐसे समय आई है जब भारत ने चालू वित्‍त वर्ष की पहली तिमाही में 13.5 फीसदी की ग्रोथ दर्ज की है। भारत दुनिया में सबसे तेज आर्थिक विकास हासिल करने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था बना हुआ है। इस वित्‍त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्‍था के 7 फीसदी की रफ्तार से बढ़ने का अनुमान है। सिर्फ एक दशक पहले बड़ी अर्थव्‍यवस्‍थाओं में भारत 11वें पायदान पर था। उस समय ब्रिटेन 5वें नंबर पर होता था। धीरे-धीरे करके वह इस फासले को कम करता गया। अंग्रेजों की तरह भारत ने दूसरों को लूटकर नहीं, बल्कि मेहनत और कौशल के दम पर हर मील के पत्‍थर को पार क‍िया। 2021 के अंतिम तीन महीनों में भारत ने ब्रिटेन को शिकस्त दे दी। पहली तिमाही यानी मार्च आने तक उसने इस बढ़त का फासला और बढ़ा लिया। अंतरराष्‍ट्रीय मुद्राकोष के आंकड़ों के मुताबिक, यह कैलकुलेशन अमेरिकी डॉलर पर आधारित है।

डॉलर एक्‍सचेंज रेट के हिसाब से मार्च तक नॉमिनल कैश टर्म्‍स में भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था का आकार 854.7 बिलियन डॉलर था। इसी आधार पर ब्रिटेन की अर्थव्‍यवस्‍था 816 अरब डॉलर की थी। आईएमएफ डेटाबेस और ब्‍लूमबर्ग टर्मिनल के हिस्टोरिकल एक्‍सचेंज रेट का इस्‍तेमाल करते हुए यह कैलकुलेशन किया गया। आईएमएफ के अनुमान भी दिखा रहे थे कि इस साल ब्रिटेन भारत से पिछड़ने वाला है।

ब्रिटेन पर मुसीबतों के पहाड़ टूटे हुए हैं। वह भीषण महंगाई का सामना कर रहा है। चार दशक में पहली बार वह महंगाई की सबसे तेज रफ्तार से दो-चार है। ग्रोथ भी सुस्‍त है। दूसरी तिमाही में ब्रिटेन की जीडीपी सिर्फ 1 फीसदी बढ़ी है। उसमें भी अगर महंगाई को एडजस्‍ट कर दें तो यह बढ़ने के बजाय 0.1 फीसदी सिकुड़ी है। डॉलर के मुकाबले उसकी करेंसी का प्रदर्शन भी फीका है।

ब्रिटेन की स्थिति में यह गिरावट ऐसे समय आई है, जब देश में राजनीतिक अस्थिरता है और सत्तारूढ़ पार्टी नया प्रधानमंत्री चुनने के दौर में है। अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में ब्रिटेन की गिरावट नए प्रधानमंत्री के लिए अप्रिय स्थिति होगी। कंजर्वेटिव पार्टी के सदस्य सोमवार को बोरिस जॉनसन के उत्तराधिकारी का चयन करेंगे। अनुमान जताए जा रहे हैं कि विदेश सचिव लिज ट्रस, पूर्व चांसलर ऋषि सुनक से आगे हैं। लेकिन, उसके सामने कई चुनौतियां होंगी। सबसे बड़ी चुनौती तो अर्थव्‍यवस्‍था को रफ्तार देने की ही होगी।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के मुताबिक, 2019 में भी नॉमिनल जीडीपी के मामले में भारत 5वीं बड़ी अर्थव्यवस्था (2.9 लाख करोड़ डॉलर) बन गया था। ब्रिटेन (2.8 लाख करोड़ डॉलर) छठे स्थान पर आ गया था। हालांकि भारत फिर पिछड़ गया था।

बीते कुछ सालों में भारत में सुधारों की बयार आई है। ये सुधार हर क्षेत्र में हुए हैं। सुधारों की दिशा में बढ़ने से सरकार घबराई नहीं है। उसने मेड इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया जैसे कई इनीशिएटिव लिए हैं। इनका ग्रोथ पर सरकारात्‍मक असर पड़ा है। कोरोना के दौरान भी आर्थिक विकास को बढ़ावा देने पर सरकार का जोर रहा। सरकार की इन पॉलिसीज का फायदा हुआ।

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