बहू और दामाद को बुजुर्गों की सेवा के लिए जिम्मेदार बनाने का फैसला सिर्फ़ क़ानून बनाने तक सीमित न रहे इसलिए वरिष्ठ नागरिकों को अपनी सारी जमा-पुंजी एवं प्रॉपर्टी के सारे दस्तावेज़ अपने नाम पर सुरक्षित रखना ज़रुरी हैं। बुजुर्गों को अपने जीवन भर की मेहनत से कमाई जमा पुंजी प्रॉपर्टी को ‘नॉमिनेशन’ अथवा ‘विल’ के मार्फ़त अपने वारिसदार के नाम करनी चाहिए। जब तक वे ख़ुद जीवित हैं तब तक उसे स्वयं तथा उनपर आश्रित पत्नि के नाम करने के बाद ही बेटे-बेटी या बहु-दामाद के नाम अपनी इच्छानुसार वासियतनामा बना कर ही बांटना चाहिए।
जीवित रहते हुए ही अपनी प्रॉपर्टी का बटवारा कर देने पर बुज़ुर्गों को मजबूरन बच्चों पर निर्भर रहते हुए मासिक गुज़ारा भत्ता के लिए क़ानून का सहारा लेना पड़ता है। बहू और दामाद को बुजुर्गों की सेवा के लिए जिम्मेदार बनाने का फैसला सिर्फ़ क़ानून बनाने तक सीमित न रहे इसलिए वरिष्ठ नागरिकों को अपनी सारी जमा-पुंजी एवं प्रॉपर्टी के सारे दस्तावेज़ अपने नाम पर सुरक्षित रखना भी ज़रुरी है।
बुजुर्गों को अपने जीवन भर की मेहनत से कमाई जमा पुंजी प्रॉपर्टी को ‘नॉमिनेशन’ अथवा ‘विल’ के मार्फ़त अपने वारिसदार के नाम करनी चाहिए। जब तक वे ख़ुद जीवित हैं तब तक उसे स्वयं तथा उनपर आश्रित पत्नि के नाम करने के बाद ही बेटे-बेटी या बहु-दामाद के नाम अपनी इच्छानुसार वासियतनामा बना कर ही बांटना चाहिए। जीवित रहते हुए ही अपनी प्रॉपर्टी का बंटवारा करने से बुज़ुर्गों को मजबूरन बच्चों पर निर्भर रहते हुए मासिक गुज़ारा भत्ता के लिए क़ानून का सहारा लेना पड़ सकता हैं।
भरतकुमार सोलंकी, वित्त विशेषज्ञ