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हमेशा याद रहेगी लॉकडाउन वाली ईद, कोरोना की वजह से गले मिलने से कतरा रहे लोग

[Edited By: Admin]

Monday, 25th May , 2020 12:27 pm

ईद के मौके पर ऐसी पहली बार हुआ है जब लोग एक दूसरे से गले मिलने से कतरा रहे हैं. लॉकडाउन के चलते इस बार ईद उल फितर का जश्न फीका पड़ गया है। इस बार ज्यादातर लोगों ने ईद पर नए कपड़े नहीं खरीदे हैं. रविवार को भी लोगों ने खाने-पीने का सामान ही खरीदा. इसके साथ ही लोगों ने मास्क और सैनिटाइजर की भी जमकर खरीदारी की. हर साल ईद की नमाज के बाद लोग एक-दूसरे से गले मिलकर मुबारकबाद देते थे, लेकिन इस बार कोरोना संकट के चलते दूर से आदाब, सलाम कर ईद की मुबारक बोलेंगे. वीडियो कॉल कर देंगे ईद की बधाई: हर साल ईद पर लोग एक-दूसरे के घर जाकर ईद की मुबारकबाद देते थे, लेकिन इस बार लोगों से अपील की गई है कि वह सामाजिक व शारीरिक दूरी को ध्यान में रखते हुए किसी के घर मिलने न जाएं.

यदि कोई घर आता है तो मीठी सेवइयां और शरबत परोसने से पहले आगंतुक का हाथ सैनिटाइज कारएंगे. वहीं, न्यू हिडन विहार अर्थला की रहने वाली शबाना परवीन का कहना है कि वह लॉकडाउन का पालन करते हुए इस बार किसी के यहां नहीं जाएंगी. उनका कहना है कि वह सभी को वीडियो कॉल कर ईद की बधाई देंगी.

क्या है ईद-उल-फितर का मतलब?
ईद-उल-फितर' दरअसल दो शब्द हैं. 'ईद' और 'फितर'. असल में 'ईद' के साथ 'फितर' को जोड़े जाने का एक खास मकसद है. वह मकसद है रमजान में जरूरी की गई रुकावटों को खत्म करने का ऐलान. साथ ही छोटे-बड़े, अमीर-गरीब सबकी ईद हो जाना. यह नहीं कि पैसे वालों ने, साधन-संपन्न लोगों ने रंगारंग, तड़क-भड़क के साथ त्योहार मना लिया व गरीब-गुरबा मुंह देखते रह गए.

शब्द 'फितर' के मायने चीरने, चाक करने के हैं और ईद-उल-फितर उन तमाम रुकावटों को भी चाक कर देती है, जो रमजान में लगा दी गई थीं. जैसे रमजान में दिन के समय खाना-पीना व अन्य कई बातों से रोक दिया जाता है. ईद के बाद आप सामान्य दिनों की तरह दिन में खा-पी सकते हैं. गोया ईद-उल-फितर इस बात का ऐलान है कि अल्लाह की तरफ से जो पाबंदियां माहे-रमजान में तुम पर लगाई गई थीं, वे अब खत्म की जाती हैं.

इसी फितर से 'फितरा' बना है फितरा यानी वह रकम जो खाते-पीते, साधन संपन्न घरानों के लोग आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को देते हैं. ईद की नमाज से पहले इसका अदा करना जरूरी होता है. इस तरह अमीर के साथ ही गरीब की, साधन संपन्न के साथ साधनविहीन की ईद भी मन जाती है. असल में ईद से पहले यानी रमजान में जकात अदा करने की परंपरा है. यह जकात भी गरीबों, बेवाओं व यतीमों को दी जाती है.इसके साथ फित्रे की रकम भी उन्हीं का हिस्सा है. इस सबके पीछे सोच यही है कि ईद के दिन कोई खाली हाथ न रहे, क्योंकि यह खुशी का दिन है.

यह खुशी खासतौर से इसलिए भी है कि रमजान का महीना जो एक तरह से परीक्षा का महीना है, वह अल्लाह के नेक बंदों ने पूरी अकीदत (श्रद्धा), ईमानदारी व लगन से अल्लाह के हुक्मों पर चलने में गुजारा. इस कड़ी आजमाइश के बाद का तोहफा ईद है. इस दिन अल्लाह की रहमत पूरे जोश पर होती है तथा अपना हुक्म पूरा करने वाले बंदों को रहमतों की बारिश से भिगो देती है.

अल्लाह पाक रमजान की इबादतों के बदले अपने नेक बंदों को बख्शे जाने का ऐलान फरमा देते हैं. सही मायनों में तो ये मन्नतें पूरी होने का दिन है. इन मन्नतों के साथ तो ऊपर वाले के सामने सभी मंगते बनने को तैयार हो जाते हैं. उस रहीमो-करीम की असीम रहमतों की आस लेकर एक माह तक मुसलसल इम्तिहान देते रहे. यह खुशी खासतौर से इसलिए भी है कि रमजान का महीना जो एक तरह से परीक्षा का महीना है, वह अल्लाह के नेक बंदों ने पूरी अकीदत (श्रद्धा), ईमानदारी व लगन से अल्लाह के हुक्मों पर चलने में गुजारा.

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