Trending News

मौत के 51 साल बाद भी सरहद की रक्षा कर रहा पंजाब रेजिमेंट का जवान हरभजन सिंह

[Edited By: Admin]

Monday, 16th September , 2019 01:50 pm

क्या कोई सैनिक मौत के बाद भी अपनी ड्यूटी कर सकता है?  क्या किसी मृत सैनिक की आत्मा अपना कर्तव्य निभाते हुए देश की सीमा की रक्षा कर सकती है ?

आपको ये सवाल अजीब  लग सकते हैं, आप सब कह सकते हैं कि भला ऐसा कैसे मुमकिन है?  पर सिक्किम के लोगों और वहां पर तैनात सैनिकों से अगर आप पूछेंगे तो वो कहेंगे कि ऐसा पिछले 51 सालों से लगातार हो रहा है। उन सबका मानना है की पंजाब रेजिमेंट के जवान हरभजन सिंह की आत्मा पिछले 51 सालों से लगातार देश की सीमा की रक्षा कर रही है। सरहद पर तैनात सैनिक अपनी जान की बाजी लगाकर देश की रक्षा करते हैं..

Image result for baba harbhajan singh

ऐसे कई सैनिकों के वीरता और जज्बे की दास्तां हम सब सुनते आ रहे हैं पर आज जिस फौजी की कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं वो तो मरने के बाद भी देश की रक्षा करते हुए अपना फर्ज निभा रहा है।  इस सैनिक के जज्बे को भारतीय सेना से लेकर चीन के सैनिक भी सलाम करते हैं। इस सैनिक का नाम था बाबा हरभजन सिंह। 

चलिए आपको विस्तार से बाबा हरभजन सिंह के अद्भुत कहानी के बारे में बताते हैं, दरअसल ये मामला सिक्किम में भारत-चीन सीमा पर तैनात एक मृत सैनिक का है जिसके बारे में कहा जाता है कि वो मौत के 51 साल बाद भी सरहद की रक्षा कर रहा है।

Related image

यहीं नहीं उस सैनिक के याद में एक मंदिर का भी निर्माण कराया गया है .. जो कि सिक्किम की राजधानी गंगटोक में जेलेप्ला दर्रे और नाथुला दर्रे के बीच बना लगभग 13 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। ये मंदिर शहीद सैनिक बाबा हरभजन सिंह के मंदिर के नाम से जाना जाता है, जहां प्रतीक के तौर पर उनकी एक तस्वीर और सामान रखा हुआ है। बाबा हरभजन सिंह के बारे में बताया जाता है उनकी मृत्यू 4 अक्टूबर 1968 में सिक्किम के नाथुला पास में गहरी खाई में गिरने से हुई थी। जिसके बाद कुछ ऐसा देखने को मिला कि इलाके के लोगों को ये विश्वास हो गया कि सैनिक हरभजन सिंह की आत्मा मरकर भी यहां सरहदों की रक्षा करती है।

Image result for baba harbhajan singh

यहीं नहीं चीन के सैनिक भी इस बात पर विश्वास करते हैं और डरते हैं कि यहां सरहद की सीमा पर बाबा मुस्तैद है, क्योंकि उन्होंने भी बाबा हरभजन सिंह के मृत्यु के बाद भी उन्हें घोड़े पर सवार होकर बॉर्डर पर गश्त करते हुए देखा है। कैप्टन हरभजन सिंह के जीवनी की बात करें तो उनका जन्म 3 अगस्त 1941 को पंजाब के कपूरथला जिला के ब्रोंदल गांव में हुआ था और साल 1966 में उन्होंने 23वीं पंजाब बटालियन ज्वाइन की थी। उनकी मृत्यु एक हादसा थी.. दरअसल सिक्किम में पोस्टेड हरभजन सिंह 4 अक्टूबर 1968 के दिन टेकुला सरहद से घोड़े पर सवार होकर अपने मुख्यालय डेंगचुकला की तरफ जा रहे थे, तभी वो एक तेज बहते हुए झरने में जा गिरे जहां उनकी मौत हो गई।

बाबा हरभजन सिंह मरने के बाद भी वो सैनिक के रूप में अपनी ड्यूटी करते हैं। इस हादसे के बाद उनकी खोज में सेना का पांच दिन तक सर्च ऑपरेशन चला था , लेकिन पता ना चलने पर उन्हें लापता घोषित कर दिया गया। बताया जाता है कि हादसे के पांचवें दिन हरभजन सिंह ने अपने एक साथी सिपाही प्रीतम सिंह को सपने में आकर अपनी मृत्यु की जानकारी दी और बताया था की उनका शव कहां पड़ा है। साथ ही उन्होंने प्रीतम सिंह से उसी स्थान पर अपनी समाधि बनाए जाने की इच्छा भी रखी।

Image result for baba harbhajan singh

हालांकि लोगों को पहले तो प्रीतम सिंह की बात का विश्वास नहीं हुआ, लेकिन फिर जब उनका शव बताए हुए स्थान पर मिला तो स्थानीय लोगों के साथ सेना के अधिकारियों को भी उनकी बात पर विश्वास हो गया। ऐसे में इस घटना के बाद सेना के अधिकारियों ने सैनिक हरभजन सिंह की उसी जगह छो क्या छो नामक स्थान पर समाधि बनवा दी।इस मंदिर में बाबा हरभजन सिंह के जूते और उनका सामन रखा हुआ है। इस मंदिर की देखरेख भारतीय सेना के जवान करते हैं और हर रोज बाबा के जूते पॉलिश करना, उनका बिस्तर सही करना, ये सैनिकों की ड्यूटी है। मंदिर में तैनात सिपाही बताते हैं कि हर रोज बाबा हरभजन सिंह के जूतों पर मिट्टी और कीचड़ लगा हुआ होता है, और बिना किसी के छुए भी उनके बिस्तर पर सलवटें दिखाई देती हैं। इसके साथ ही बाबा हरभजन सिंह के बारे में कहा जाता है कि मरने के बाद भी वो सैनिक के रूप में अपनी ड्यूटी करते हैं और सबसे हैरत वाली बात ये है कि ऐसा बताया जाता है कि शहीद हरभजन सिंह चीन की गतिविधियों की जानकारी अपने साथियों को देते हैं। ऐसे में हरभजन सिंह के प्रति सेना का भी इतना विश्वास है कि बाकी सभी की तरह उन्हें वेतन, दो महीने की छुट्टी जैसी सुविधा भी दी जाती थीं।

Image result for baba harbhajan singh

वैसे अब वो फिलहाल रिटायर हो चुके हैं। इसके पहले जब वे सेवा में थें तब सेना की तरफ से दो महीने की छट्टी के दौरान ट्रेन में उनके घर तक की टिकट बुक करवाई जाती थी, और इसके लिए स्‍थानीय लोग उनका सामान लेकर जुलूस के रूप में उन्हें रेलवे स्टेशन छोड़ने जाते थे। उस समय उनके वेतन का एक चौथाई हिस्सा उनकी मां को भेजा जाता था। वहीं आज भी जब नाथुला में भारत और चीन के बीच फ्लैग मीटिंग होती है तो चीन की तरफ से बाबा हरभजन के लिए एक अलग से कुर्सी लगाई जाती है। इस तरह मर कर भी सैनिक हरभजन सिंह अपने कर्तव्य और देशभक्ति के लिए जाने जाते हैं।

हरभजन सिंह पर बनी शॉर्ट फिल्म यहां देखें....

Plus Minus | Divya Dutta & Bhuvan Bam | Short Film

Latest News

World News