नोटबंदी के तीन साल पूरे हो चुके हैं. 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ऐतिहासिक संबोधन के दौरान 500 और 1,000 रुपए के नोटों को चलन से बाहर करने की घोषणा की थी.
हाल ही में हुए एक सर्वे में यह बात सामने आई है कि पांच सौ व दो हजार रुपये के नये नोट जारी करने के चलते काले धन में कमी आई है. लोग मानते हैं कि नोटबंदी के बाद ज्यादा लोग टैक्स के दायरे में आये हैं.
नोटबंदी का नकारात्मक पहलू यह रहा है कि असंगठित क्षेत्र से जुड़े लोगों पर आर्थिक मंदी के साथ ही उनकी आय पर इसका बुरा असर पड़ा है. आम लोगों में नकदी का लेन देन घटा है लेकिन संपत्तियों की खरीद में नकदी का इस्तेमाल ज्यादा होने लगा है. लोकल सर्किल द्वारा कराये गये इस सर्वे के अनुसार अभी भी बहुत से ऐसे लोग हैं जो डिजिटल भुगतान की अपेक्षा नकद लेन-देन ज्यादा पसंद करते हैं.
42 फीसदी लोगों का मानना है कि टैक्स चोरी करने वाले लोग अब बड़ी संख्या में टैक्स के दायरे में आ गये हैं. वहीं 21 फीसदी मानते हैं कि अर्थव्यवस्था में ब्लैक मनी घटी है. 12 फीसदी लोगों के अनुसार इससे प्रत्यक्ष कर में वृद्धि हुई है. वहीं 25 फीसदी लोग नोटबंदी में कोई फायदा नहीं देखते हैं.
नोटबंदी के तीन साल पूरे होने पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी नोटबंदी को लेकर भाजपा सरकार पर हमला बोला. उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा कि आज 'नोटबंदी आपदा' की तीसरी वर्षगांठ है. इसकी घोषणा के कुछ ही मिनटों के भीतर मैंने कहा था कि यह अर्थव्यवस्था और लाखों लोगों के जीवन को बर्बाद कर देगा. प्रसिद्ध अर्थशास्त्री, आम लोग और सभी विशेषज्ञ अब इससे सहमत हैं। रिजर्व बैंक के आंकड़ों से यह भी पता चला है कि यह एक निरर्थक अभ्यास था.
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने शुक्रवार को मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि नोटबंदी एक आपदा साबित हुई है जिसने देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया। प्रियंका ने आठ नवंबर को नोटबंदी के तीन साल पूरे होने के मौके पर मोदी सरकार पर यह हमला बोला. उन्होंने ट्वीट कर लिखा कि नोटबंदी को तीन साल हो गए। सरकार और इसके नीम-हकीमों द्वारा किए गए, ‘नोटबंदी सारी बीमारियों का शर्तिया इलाज’ के सारे दावे एक-एक करके धराशायी हो गए. नोटबंदी एक आपदा साबित हुई जिसने हमारी अर्थव्यवस्था बर्बाद कर दी. इस ‘तुग़लकी’ कदम की जिम्मेदारी अब कौन लेगा?