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विश्लेषण: भारतीय लोगों के लिए सोना खरीदना नुकसान का सौदा, क्वालिटी कंपनियों की इक्विटी में निवेश लॉन्गटर्म लिए फायदेमंद

[Edited By: Admin]

Sunday, 25th August , 2019 03:45 pm

जिंदगी में काम जरूरी है दुनिया में काम के दो ही तरीके हैं पहला व्यापार और दूसरा नौकरी पेशा। खेती को कुछ लोग व्यापार से अलग समझते हैं लेकिन खेती व्यापार का ही एक विशेष प्रकार है। बहुत से काम सरकार अपनी एक सरकारी कंपनी बना कर करती हैं। देश के कुशल व्यापारियों के साथ स्टॉक होल्डिंग भागीदारी यानी जॉइन्ट वेंचर 'प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप' के रूप में भी कई कार्यों को अंजाम दिया जाता हैं। देशी निवेशकों के अलावा विदेशी निवेशकों के साथ भी जॉइन्ट वेंचर पार्टनरशिप बिजनेस किया जाता हैं। निजी कंपनियां जिस तरह अपने व्यापार का लेखा जोखा बनाकर व्यापार में प्राप्त शुद्ध लाभ का हिसाब-किताब रखती हैं ठीक वैसे ही सरकार भी अपनी कंपनियों के कारोबार का मासिक, त्रेमासिक, अर्धवार्षिक एवं वार्षिक स्तर पर आंकलन करती हैं। सरकारी एवं गैर सरकारी कंपनियों के साथ व्यापार कारोबार से प्राप्त मुनाफे से सरकार को डिविडेंड के रूप में शुद्ध मुनाफा मिलता हैं जिसे सरकार अन्य कंपनियों में निवेश करती है या जनहित में जरुरी कामों को अंजाम देती है। सरकार का उद्देश्य जिस तरह जनहित में कार्य करना होता हैं ठीक इसी तरह निजी स्तर पर व्यापार धंधा करने वाले छोटे बड़े व्यापारियों का उद्देश्य भी अपने ग्राहकों के प्रति इमानदारी से उत्पाद सेवा प्रदान करना ही रहता है। यह एक अपवाद या वाद-विवाद का विषय हो सकता हैं।व्यापार सरकार करे अथवा प्राइवेट प्रोमोटर उनके नीति-नियम, उसूल उच्चस्तर के होने पर ही व्यापार में सफलता का एक शिखर पिरामिड की तरह बनता है।

विश्लेषण: व्यापार नीति का सफल और बहुत पुराना उसूल है 'सबका साथ, सबका विकास'

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'सबका साथ, सबका विकास' यह वर्तमान सरकार का एक नया नारा ही नहीं बल्कि व्यापार नीति का एक सफल एवं बहुत पुराना उसूल है। सफलता के शिखर पर किसी एक व्यक्ति के व्यक्तिगत लालच की नीति से व्यापार में सफलता की सीढ़ी पर नहीं पहुंचा जा सकता है। व्यापार का साम्राज्य भी एक पिरामिड की तरह लाखों छोटे-बड़े व्यापारियों के साथ करोड़ों ग्राहकों के हितों को ध्यान में रखते हुए उत्पाद सेवा के आधार पर ही खड़ा होता है। व्यापार एवं देश की इकॉनमी के बीच चोली-दामन का साथ है। सरकारी एवं गैर सरकारी कंपनियों की व्यापार वृद्धि को ही देश की इकॉनोमिक ग्रोथ कहा जाता है। देश के भीतर आंतरिक लेनदेन कारोबार से देश के लोगों को सेवाओं से प्राप्त मुनाफे एवं कर रेवेन्यू के अलावा इम्पोर्ट एक्सपोर्ट की राशि में अंतर को देश की बजट बैलेन्सशीट में करंट अकाउंट नफा-नुकसान कहा जाता है।किसी देश की इकॉनमी को ग्लोबल इकॉनमी में उस देश की बेलेन्सशीट के साथ एक कंपनी की तरह ही देखा जाता है। पांच ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी का जो सपना हम देख रहे हैं वो देश के कुल व्यापार का ही आंकड़ा होगा जिसे सरकारी एवं गैर सरकारी कंपनियों का साझा व्यापार कहा जा सकता है।

किसी भी देश का ग्लोबल इकॉनमी में मजबूत होने का अर्थ क्या होता हैं?

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अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय व्यापार वृद्धि से प्राप्त शुद्ध मुनाफे से जिस देश के पास फिजिकल ऐसेट्स के रूप में जमीन और सोना अधिक होता हैं वो देश मजबूत एवं ताकतवर माना जाता है। फिजिकल ऐसेट्स के अलावा फाइनेंसियल एसेट के तौर पर इक्विटी एवं डेट से उस देश की ताकत लगातार बढ़ती रहती है। रियल इस्टेट, सोना, इक्विटी एवं डेट यह चारों ऐसेट्स जैसे-जैसे लगातार बढ़ती रहती है उसी अनुपात में देश और देश के लोग समृद्ध होते जाते हैं। डेट दो तरह की होती हैं एक देनदारी तो दूसरी लेनदारी। देश पर देनदारी डेट यानी उधार ज्यादा बढ़ जाए तो हर नागरिक पर इसका बुरा असर पड़ता हैं।

ग्लोबल ग्रोथ में सुस्ती, गोल्ड में तेजी का माहौल बन गया

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सरकार, व्यापारी या कोई व्यक्ति अपने घर की कामवाली बाई को भी उधार यानी ऋण लेकर पगार देता है तो उस व्यक्ति, व्यापारी या सरकार का भविष्य कैसा होगा उसकी कल्पना की जा सकती हैं। जिस तरह हर साल ऋण पर ब्याज चुकाते रहने पर एक न एक दिन तो उस कंपनी या देश की आर्थिक हालत दिवालिया होने की कगार पर आ जाती है। ठीक इसी तरह उधार के पैसों से सोना खरीदकर हम देश के भीतर धन्नासेठ बनकर तिजोरियां तो भर सकते हैं लेकिन देश के खजाने पर अंतर्राष्ट्रीय कर्ज का बोझ बढ़ता जाएगा, जिससे हमारी करेंसी का मूल्य टूटता जाएगा। दुनिया में आज ऐसे कई देश हैं जो बार-बार करेंसी प्रिंटकर अपने देश के आंतरिक बाजारों में लोगों की खरीददारी क्षमता तो बढ़ा रहे हैं पर अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में उनकी करेंसी की दर लगातार गिरती जा रही है। इंडोनेशिया, वियतनाम जैसे कई देशो में पर्यटकों को झोला भर-भरकर करेंसी लेकर जाना पड़ता है।

करेंसी मूल्य कोई भी देश की इकॉनमी का एक आइना है जिसमें उस देश की असली ताकत का अंदाजा सीधे तौर पर लगाया जा सकता हैं। जब पैसे हमारे खुद के नहीं हैं और हम विदेशों से उधार लेकर सोना, पेट्रोल एवं इलेक्ट्रॉनिक आदि सामान इम्पोर्ट कर रहे हैं तो देश की बैलेन्सशीट में घाटा दिखना स्वाभाविक हैं। करेंट अकाउंट डेफिसिट घाटा कम करने के लिए हमें अपना एक्सपोर्ट बढ़ाना होगा। एक्सपोर्ट बढ़ाने के लिए देश की आम जनता, किसानों एवं उद्योगपतियों को उपज उत्पादन बढ़ानी होगी। देश के पढ़े-लिखे किसान गोल्ड ज्वेलरी यह सोचकर खरीदते हैं कि घर में रखा सोना अपने बुरे समय में काम आएगा और उसके भाव बढ़ने पर मुनाफा भी हो जाएगा। बुरे वक्त की कल्पना के साथ लिया गया सोना एक दिन बुरा समय लेकर आ भी जाता हैं। भाव बढ़ने की बात करें तो आज भी इंटरनेशनल बाजारों में सोने का दाम तीस चालीस साल पुराने ही हैं। यह तो हमारे देश की करेंसी मूल्य में गिरावट के कारण सोने में मुनाफ़ा दिखाई दे रहा है। कोई भी देश की इकोनॉमी जब संकट में हो तब उस सोने को अंतर्राष्ट्रिय बाज़ार में बेचने जाए तो उसे 30-40 साल पुराना भाव ही मिलेगा। सोना एक अंतर्राष्ट्रीय करेंसी है जिसका उपयोग एक्सपोर्ट- इम्पोर्ट के डिफरेंट पर एक देश से दूसरे देश को भुगतान के लिए किया जाता हैं।

राजा रजवाड़ों के ज़माने में कुछ रियासतों में चमड़े के सिक्कों का चलन हुआ करता था और वह चमड़े के सिक्के सिर्फ अपनी-अपनी रियासतों में ही चलते थे।राजाओं के पास हथियारों की खरीद के बदले अनाज आदि दूसरा सामान देने के लिए नहीं होता था तो चमड़े के सिक्कों से भी काम नहीं चलता था उन्हें स्वर्ण मुद्राओं से ही भुगतान करना पड़ता था। ग्लोबल ग्रोथ में सुस्ती के साथ दुनिया भर में ब्याज दरें घटने का सिलसिला शुरू होने से गोल्ड में तेजी का माहौल बन गया है। त्योहारी सीजन में भारतीय बाजारों में सोना 40 हजारी बन सकता है।

गरीब भारतीय लोगों के लिए सोना खरीदना नुकसान का सौदा ही साबित होगा

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इस वक्त घरेलू मार्केट में डिमांड नहीं है, इसके बावजूद गोल्ड के दाम बढ़ रहे हैं। अमेरिका में ब्याज दरों में कटौती थम सकती है। लंदन एवं न्यूयॉर्क में गोल्ड हाजिर 1,502.95 डॉलर प्रति औंस पर पहुंच गया है। एक प्रति औंस में 31.650 ग्राम सोना होता है। अमेरिकन डॉलर के हिसाब से सवा चार सौ डॉलर में दस ग्राम सोना मिल जाता है। हमारा देश विकास के मार्ग पर तेजी से चल पड़ा है और भविष्य में अमेरिकन डॉलर और भारतीय करेंसी रूपया एक समान होने की पूरी संभावना है। रुपया मजबूत होने पर जिस दिन डॉलर और रुपया एक समान हो जाएगा उस दिन सोना भी फिर से सवा चार सौ रुपया दस ग्राम हो जाएगा। चीन और अमेरिका के बीच जारी ट्रेडवॉर के अलावा ग्लोबल मार्केट में स्लोडाउन की खबरों से शेयर मार्केट में इन्वेस्टमेंट कम हो रहा है।ऐसे में गोल्ड में अल्पक़ालीन तेजी की आशंका है। अगर अब तक गोल्ड में रिटर्न की बात करें तो इसने ‘डॉलर-रूपी’ टर्म में पिछले चालीस सालों में नेगेटिव रिटर्न भारतीय इनवेस्टरों को दिया है।लॉन्ग टर्म में सालाना आधार पर गोल्ड पर रिटर्न चार प्रतिशत तक हो गया है। महंग़ाई दर की तुलना में देखा जाए तो लॉन्गटर्म में गोल्ड ने बहुत अधिक बार निगेटिव रिटर्न ही दिया है। मंदी के दौर में अंतर्राष्ट्रीय धनी निवेशकों के लिए सोना एक सुरक्षित निवेश हो भी सकता है लेकिन गरीब भारतीय लोगों के लिए सोना खरीदना नुकसान का सौदा ही साबित होगा। भारतीय स्टॉक मार्केट के कई एक्सपर्ट विशेषज्ञों का कहना है कि बचत के लिहाज से इस वक्त एफडी जैसे प्रोडक्ट से शॉर्टटर्म के अपने गोल को पूरा किया जा सकता है।

क्वालिटी कंपनियों की इक्विटी में निवेश लॉन्गटर्म भागीदारी के रूप में खरीदना आम लोगों के लिए फायदेमंद

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दुनिया भर में व्यापार से बढ़कर दूसरा अन्य कोई विकल्प अब तक पैदा ही नहीं हुआ हैं जिसमें पुंजी वृद्धि की संभावना बनती हो। आम भारतीय लोगों के पास क्वालिटी इक्विटी स्टॉक में निवेश बिलकुल नहीं है। भारतीय शेयर बाजार की निरंतर ग्रोथ सिर्फ क्वालिटी कंपनियों की इक्विटी में निवेश लॉन्गटर्म भागीदारी के रूप में खरीदना आम लोगों के लिए फायदेमंद साबित होगा।

शॉर्ट टर्म की इस मंदी के बाद शेयर मार्केट में इन्वेस्टरों का रुझान लगातार बढ़ेगा। चीन और अमेरिका के बीच ट्रेड वॉर जारी है। इसी बीच पिछले महीने की एक खबर यह भी थी कि जर्मनी निगेटिव दर पर बॉन्ड जारी कर रहा हैं यानी वह विकासशील देशों को अपना पैसा रखने के लिए पैसा दे रहा है। वह अपने बॉन्ड पर ब्याज नहीं लेकर उल्टा पैसे को सुरक्षित समय पर वापस लौटाने के लिए उस पर मेंटेनेंस चार्ज भी देगा। एक सफल व्यापारी हो अथवा कोई विकसित देश की सरकार जो अपने सारे साधन जुटाने के बाद आखिर वह फिर से अपनी पूंजी एक विकासशील समाज को ही वापस लौटाता भी है। लेकिन बिना ब्याज का पैसा देने का मतलब यह नहीं कि कोई व्यक्ति, व्यापारी अथवा समाज अपने जीवनयापन के लिए कोई काम ही न करे! कर्म की प्रेरणा हमारी गीता में भी दी गई है। कर्म एवं पुरुषार्थ से अर्जित धन संपत्ति देश दुनिया, समाज के लिए सुरक्षित, हिंसा मुक्त विश्व के निर्माण में सहायक बनती है।

(भरतकुमार सोलंकी, कालबादेवी-मुंबई- 9820085610 द्वारा व्यापार के मौजूदा समीकरणों का विश्लेषण करता लेख) 

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