केंद्र शासित प्रदेश के तौर पर अब जम्मू-कश्मीर भी अस्तित्व में आ गया है. ऐसे में 72 साल पहले पाकिस्तान से विस्थापित परिवारों को फिर से चिंता हो रही है कि उन्हें अब फिर दरबदर न होना पड़ेगा. हालांकि राज्य के पुनर्गठन के प्रारूप में साफ है कि उनकी छत कायम रहेगी. यह परिवार पिछले सात दशक से विभाजन के समय में जम्मू कश्मीर से पलायन कर गए परिवारों के घरों में किरायेदार की तरह रह रहे हैं. उन्हें डर था कि केंद्रशासित प्रदेश में अगर कस्टोडियन विभाग का अस्तित्व खत्म हो गया तो फिर से उनका आशियाना उजड़ सकता है. अब उन्हें यह भी उम्मीद जगी है कि केंद्रशासित प्रदेश में जल्द उन्हें इस संपत्ति का अधिकार मिल सकता है.
देश में राज्यों की संख्या 28 रह गई और केंद्रशासित प्रदेशों की संख्या बढ़कर नौ हो गई.
इससे पहले राज्य की तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के इस्तीफे के बाद जून 2017 में जम्मू कश्मीर में राज्यपाल शासन लगा दिया गया था और राज्यपाल शासन के छह महीने बाद राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था. दो नए केन्द्र शासित क्षेत्र के गठन के बाद बृहस्पतिवार को राष्ट्रपति शासन हटाने की घोषणा की गई. संविधान का अनुच्छेद 356, जिसके तहत राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है, केंद्र शासित क्षेत्रों पर लागू नहीं होता.
केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने और इसके विभाजन की घोषणा पांच अगस्त को राज्यसभा में की थी. कानून के मुताबिक संघ शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में पुडुचेरी की तरह ही विधानसभा होगी, जबकि लद्दाख चंडीगढ़ की तर्ज पर बिना विधानसभा वाला केंद्रशासित प्रदेश होगा. केंद्रशासित प्रदेश बनने के साथ ही जम्मू-कश्मीर की कानून-व्यवस्था और पुलिस पर केंद्र का सीधा नियंत्रण होगा, जबकि भूमि वहां की निर्वाचित सरकार के अधीन होगी. लद्दाख केंद्रशासित प्रदेश केंद्र सरकार के सीधे नियंत्रण में होगा.
पूर्व रक्षा सचिव आरके माथुर ने गुरुवार को केंद्र शासित क्षेत्र लद्दाख के पहले उपराज्यपाल के तौर पर शपथ ली. जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल ने लेह के तिसूरू में सिंधु संस्कृति ऑडिटोरियम में एक समारोह में माथुर को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई. माथुर त्रिपुरा से 1977 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। उन्होंने आईआईटी से इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग में स्नातकोत्तर किया है.वह वर्ष 2015 में रक्षा सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए थे. वहीं गिरीश चंद्र मुर्मू को जम्मू कश्मीर का उपराज्यपाल बनाया गया है. वह आज श्रीनगर में पदभार ग्रहण करेंगे.
जम्मू कश्मीर और लद्दाख के अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बन जाने से कारोबारियों के लिए मौके बढ़ेंगे.जानकारों का कहना है कि जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त होने के बाद से अभी तक कारोबारियों में स्थानीय प्रशासन को लेकर संशय की स्थिति बन गई है. लेकिन आज से दोनों केंद्र शासित प्रदेशों के अस्तित्व में आने के बाद यह स्पष्ट हो गया है.अब कारोबारियों को अपना कारोबार स्थापित करने में आसानी होगी और उन्हें जरूरत मंजूरियों के लिए भटकना नहीं पड़ेगा.
आधिकारिक तौर से अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद अब 90 दिन में एक या उससे ज्यादा एडवाइजरी कमेटी बनाई जाएगी. इनका काम जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के बीच बिजली और पानी की सप्लाई जैसी आम जरूरतों का बराबर बंटवारा करना होगा. ये कमेटी 6 महीने के अंदर उपराज्यपाल को अपनी रिपोर्ट देगी, जिसके बाद 1 महीने के अंदर कमेटी की सिफारिशों के आधार पर विभाजन होगा.
विराग बताते हैं कि जम्मू कश्मीर में अनेक हाइड्रो और थर्मल पावर प्लांट का बटवारा होगा, जिसके बाद दोनों राज्यों में नई पॉवर कंपनियों का गठन होगा. जम्मू कश्मीर के पुराने राज्य बिजली कानून 2010 की समाप्ति हो गई है और उसकी जगह अब केंद्रीय बिजली कानून लागू होगा. पावर प्लांट्स से राज्य को लगभग 12% की रॉयल्टी मिलती है.
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में काम कर रहे सभी प्रशासनिक अधिकारी और राज्य कैडर के आईएएस, आईपीएस और आईएफएस मौजूदा जगहों पर ही काम कर रहे थे और 31 अक्टूबर से भी वे अपने मौजूदा कैडर के तहत काम जारी रखेंगे. ये अधिकारी अपनी सेवाएं मौजूदा तरीके से तब तक जारी रख सकते हैं, जब तक दोनों केंद्र शासित प्रदेश के उपराज्यपाल नया आदेश जारी नहीं करते. इसके अलावा जम्मू-कश्मीर में विधानसभा गठन होने के बाद सरकार अपने प्रशासन का गठन करेगी. विराग कहते हैं कि बंटवारे के बाद राज्य सरकार के कर्मचारियों का भी बंटवारा होगा. वहां पर अब आईएएस और आईपीएस का नया यूटी कैडर बनेगा, जिससे केंद्रीय गृह मंत्रालय का नए राज्यों में ज्यादा नियंत्रण होगा.
1) उपराज्यपाल ही मुखिया होगा : संविधान के अनुच्छेद 239ए के तहत जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया है। यही अनुच्छेद दिल्ली और पुडुचेरी पर लागू है। इसके तहत जम्मू-कश्मीर की अपनी विधानसभा होगी. हालांकि, प्रदेश की पुलिस उपराज्यपाल के अधीन होगी. उपराज्यपाल के जरिए कानून-व्यवस्था का मामला केंद्र सरकार के पास होगा. जबकि, जमीन से जुड़े मामले विधानसभा के पास ही होंगे. वहीं, लद्दाख अनुच्छेद 239 के तहत केंद्र शासित प्रदेश बना है.इसके तहत लद्दाख की न ही कोई विधानसभा होगी और न ही कोई विधान परिषद। यहां उपराज्यपाल ही मुखिया होगा। उपराज्यपाल की नियुक्ति केंद्र सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति करते हैं.
2) जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीट बढ़ेंगी : जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक के मुताबिक, चुनाव आयोग और सरकार मिलकर जम्मू-कश्मीर का नए सिरे से परिसीमन करवाएंगे, जिसके बाद यहां विधानसभा सीटें बढ़ेंगी. अभी जम्मू-कश्मीर में 83 और लद्दाख में 4 विधानसभा सीट थी. 24 सीटें पीओके में भी हैं, जिनपर चुनाव नहीं होते हैं.इस तरह से जम्मू-कश्मीर में कुल विधानसभा सीटों की संख्या अभी तक 107 थी, जो नए परिसीमन के बाद 114 तक पहुंच सकती हैं. वहीं, जम्मू-कश्मीर में 5 लोकसभा और लद्दाख में 1 लोकसभा सीट होगी.
3) दोनों राज्यों का एक ही हाईकोर्ट होगा : जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का एक ही हाईकोर्ट होगा, जिसके न्यायिक क्षेत्र में ये दोनों केंद्र शासित प्रदेश आएंगे. दिल्ली और पुड्चेरी भी केंद्र शासित प्रदेश हैं और दोनों प्रदेशों में विधानसभा हैं, फिर भी दिल्ली का अपना हाईकोर्ट है जबकि, पुड्डुचेरी के मामले मद्रास हाईकोर्ट के क्षेत्र में आते हैं.हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस, जज, वकील और स्टाफ का खर्चा और सैलरी दोनों प्रदेशों की जनसंख्या के आधार पर वहन होगी.
4) केंद्र के 106 कानून लागू हो जाएंगे : आधार एक्ट, शत्रु संपत्ति एक्ट, हिंदू मैरिज एक्ट और आरटीआई एक्ट जैसे केंद्र के 106 कानून दोनों यूटी में लागू होंगे.इसके अलावा अनुच्छेद 370 की वजह से जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष राज्य के दर्जे से यहां 153 कानून लागू थे, जो अब खत्म हो जाएंगे. हालांकि, राज्य के 166 कानून अभी भी लागू रहेंगे.