केंद्र में जब से मोदी सरकार आई है तब से हिन्दी को पहले से ज्यादा महत्व दिया जाने लगा है। हाल ही में आरटीआई के तहत भाजपा सरकार की ओर से दिए जाने वाले विज्ञापनों की धनराशि को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है।
आरटीआई से प्राप्त हुई जानकारी के अनुसार पिछले पांच सालों में केंद्र सरकार ने अंग्रेजी अखबारों के मुकाबले हिंदी अखबारों पर ज्यादा विज्ञापन राशि खर्च की है। पिछले पांच सालों में जहां अंग्रेजी अखबारों पर सरकार ने 719 करोड़ खर्च किए, तो वही हिंदी अखबारों पर 890 करोड़ की राशि खर्च की गई है।
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में करीब 5726 करोड़ रुपये पब्लिसिटी पर खर्च किए गए है। इंटरनेट पर सरकारी विज्ञापन खर्च मे बहुत इजाफा हुआ है। ये आंकड़ा पिछले पांच सालों में 6.64 करोड़ से 26.95 करोड़ पहुंच गया है।
हिंदी अखबार दैनिक जागरण को 2014-15 से 2018-19 के बीच करीब 100 करोड़ के सरकारी विज्ञापन प्राप्त हुए हैं। वहीं दैनिक भास्कर को 56 करोड़ 66 लाख की राशि के सरकारी विज्ञापन मिले हैं। वहीं हिन्दुस्तान अखबार के लिए ये आंकड़ा करीबन 50 करोड़ 66 लाख का रहा है।
पंजाब केसरी ने भी करीब 50 करोड़ 66 लाख की विज्ञापन राशि मिली है, वहीं सरकार ने अमर उजाला को 47.4 करोड़ के सरकारी विज्ञापन दिए हैं। दिल्ली के अखबार नवभारत टाइम्स को सिर्फ तीन करोड़ 76 लाख की राशि के सरकारी विज्ञापन मिले। राजस्थान पत्रिका को 27 करोड़ 78 लाख के सरकारी विज्ञापन मिले हैं।
वहीं अंग्रेजी अखबारों पर नजर डालें तो सबसे बड़े अखबार द टाइम्स ऑफ इंडिया को 217 करोड़, हिन्दुस्तान टाइम्स को 157 करोड़, डेक्कन क्रोनिकल को 40 करोड़ के सरकारी विज्ञापन अलॉट किए गए हैं। पिछले पांच सालों में द हिंदू और द हिंदू बिजनेस लाइन को करीब 33.6 करोड़ की कीमत के सरकारी विज्ञापन दिए गए है। द टेलिग्राफ के लिए ये आंकड़ा जहां 20.8 करोड़ का रहा तो द ट्रिब्यून के खाते में करीब 13 करोड़ की सरकारी रकम गई है। डेक्कन हेराल्ड को 10.2 करोड़, द इकोनॉमिक्स टाइम्स को 8.6 करोड़, द इंडियन एक्सप्रेस को 26 लाख और द फाइनेंशियल एक्सप्रेस में 27 लाख की कीमत के सरकारी विज्ञापन प्रकाशित हुए हैं।