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कुलदीप सेंगर ने ग्राम प्रधान से शुरू किया था ‘करियर’, पीड़ित लड़की के घरवालों से था परिवार जैसा नाता

[Edited By: Admin]

Thursday, 8th August , 2019 02:00 pm

आज देशभर में यूपी के उन्नाव रेप कांड की चर्चा है। सबसे पहले एक नजर इस पूरे केस पर डाल लेते हैं। 4 जून 2017 का ये वाकया है। माखी गांव की रहने वाली पीड़िता विधायक जी के यहां नौकरी मांगने जाती है। हैवान विधायक ने मदद तो नहीं की, उल्टे पीड़िता की अस्मत लूट ली। पीड़िता ने घर आकर अपने साथ हुई घटना की बाबत बताया तो परिवार भी सकते में आ गया।

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पीड़िता ने आखिरकार ठान लिया था कि वो आरोपी को सजा दिलाएगी। उसने थाने का रुख किया, लेकिन विधायक के रसूख के आगे वर्दीवालों ने उसकी कोई मदद नहीं की। जब पुलिस ने मदद नहीं मिली तो पीड़िता ने आत्मदाह करने की कोशिश की। उसने लगातार 35 शिकायतें की, बावजूद इसके व्यवस्था के कानों पर जूं तक नहीं रेंगा। सुप्रीम कोर्ट के जज को भी पीड़िता ने चिट्ठी लिखी। आखिरकार मीडिया की सुर्खियां बनने के बाद झक मारकर सिस्टम ने पीड़िता को तवज्जो दी।

इस बीच कुलदीप सिंह सेंगर और उसके गुर्गे चुप नहीं बैठे। वे लगातार पीड़िता और उनके परिवार को प्रताड़ित करते रहे। झूठे मुकदमे में फंसाकर पहले तो पीड़िता के पिता को गिरफ्तार कराया गया। फिर थाने में ही उसे मरवा दिया गया।

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कुलदीप सेंगर का इतिहास

विधायक कुलदीप सेंगर ने महज 21 साल की उम्र में पहली बार 1987 में ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ा था। कहते हैं माखी गांव में सेंगर के परिवार की धाक है। लिहाजा कुलदीप सेंगर के खिलाफ कोई प्रतिद्वंद्वी खड़ा होने की हिम्मत आसानी से नहीं जुटा पाता है। आज भी कुलदीप के इशारे के बिना माखी गांव में पत्ता तक नहीं हिलता है। यहां तक कि उसकी मर्जी के खिलाफ कोई प्रत्याशी पर्चा तक नहीं भर सकता है। कुलदीप सेंगर के नाना बाबू सिंह भी राजनीति से ही ताल्लुक रखते थे। भले उसके नाना अब इस दुनिया में न हों, लेकिन कुलदीप उन्हें ही अपना सियासी गुरु मानता है।

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पहली बार 2002 में बना विधायक

कुलदीप सिंह सेंगर ने पहली बार 2002 में बसपा के टिकट पर जीत हासिल की थी। बसपा में भीतरघात की राजनीति के चलते मायावती ने जल्दी ही उसे पार्टी से चलता कर दिया था। बसपा से निकाले जाने के बाद सेंगर ने सपा का दामन थामा। समाजवादी पार्टी ने उसे बांगरमऊ से टिकट दिया और वो जीत गया। 2012 से भगवंत नगर सीट से भी सेंगर ने जीत हासिल की। मतलब ये कि लगातार सीट बदलने के बावजूद उसके समर्थकों की संख्या कम नहीं हुई।

2015 में जिला पंचायत अध्यक्ष को लेकर अखिलेश यादव से मतभेद के बाद सेंगर ने सपा छोड़कर बीजेपी ज्वाइन कर ली। बीजेपी ने भी सेंगर को हाथों हाथ लिया। क्योंकि हर पार्टी ने मान लिया था कि सेंगर किसी भी पार्टी में हो, उन्नाव से उसकी जीत पक्की है। 2017 में कुलदीप सेंगर ने बांगरमऊ से बीजेपी के टिकट पर एक बार फिर जीत हासिल की।

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राजा भैया का करीबी है सेंगर

यूपी के कुख्यात सियासी रसूख रखने वाले राजा भैया से कुलदीप सेंगर का करीबी रिश्ता है। कहते हैं वो राजा भैया गुट का अहम सदस्य है।

सेंगर ने ऐसे की कमाई

सेंगर और उसके परिवार ने अपने दबदबे का इस्तेमाल रुपए बनाने में भी किया। इलाके में अवैध खनन के जरिए परिवार ने करोड़ों रुपए कमाये। सेंगर परिवार पर जिसने भी उंगली उठाई उसे कुचल दिया गया। एक बार एक रिपोर्टर ने विधायक के अवैध खनन की पोल खोलनी चाही तो उसे बुरी तरह मारा गया। साथ ही उसके खिलाफ कई मुकदमे लाद दिए गए। कुलदीप के भाई अतुल सेंगर की हस्ती ऐसी कि उसने एक बार पुलिस पर ही गोली चला दी थी।

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इतना कुछ जानने के बाद कुलदीप सिंह सेंगर की हस्ती से आप वाकिफ तो हो ही गए होंगे। तभी तो 2017 में रेप के इस मामले में पूरी व्यवस्था इतनी लचर साबित हुई। पीड़िता ने अपने पिता, चाची, मौसी को खो दिया। फिलहाल वो खुद भी अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूल रही है। एक बार फिर सिस्टम ने पीड़िता की सुध लेने की ठानी है। देखना है उसे कि वो न्याय की आस में कब तक जिंदा रह पाती है?

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यूपी के 'सेंगर बंधुओं' के हाथों हुए जघन्य अपराधों की फेहरिश्त उन्नाव दुष्कर्म मामले पर आकर नहीं रुकती। अपने लिए न्याय की गुहार लगा रहे डीआईजी रैंक के उत्तर प्रदेश कैडर के एक आईपीएस अधिकारी राम लाल वर्मा पर 'सेंगर बंधुओं' ने कभी चार गोलियां दाग दी थीं, जो उनके सीने और पेट में लगी थीं। उत्तर प्रदेश में खासा रसूख रखने वाले सेंगर बंधुओं ने आईपीएस अफसर वर्मा पर जानलेवा हमले के अहम दस्तावेज न सिर्फ गुम करबा दिए, बल्कि मामले की सुनवाई वर्षो तक टलवा दी।

सेंगर को राजाभैया का भी करीबी माना जाता है।
सेंगर को राजाभैया का भी करीबी माना जाता है।

साल 2004 में बतौर पुलिस अधीक्षक वर्मा ने जब उन्नाव के एक अवैध खनन स्थल पर दबिश दी थी, उस दौरान कुलदीप सेंगर के छोटे भाई अतुल सेंगर और उसके गुर्गे ने उन्हें गोली मार दी थी। भाजपा से निष्कासित विधायक और उन्नाव दुष्कर्म मामले के मुख्य आरोपी कुलदीप सेंगर ने उन दिनों ऐसा राजनीतिक दबाव बनाया था कि थाने से महत्वपूर्ण केस डायरियां चोरी हो गईं। यही वजह है कि वर्मा की हत्या के प्रयास जैसे सनसनीखेज मामले की सुनवाई 15 साल बाद भी शुरू नहीं हो पाई है।

बीजेपी से चुनाव लड़ने के दौरान शाह ने सेंगर का चुनाव प्रचार किया था।
बीजेपी से चुनाव लड़ने के दौरान शाह ने सेंगर का चुनाव प्रचार किया था।

कई तरह की सर्जरी और महीनों अस्पताल में भर्ती रहे आईपीएस अधिकारी राम लाल वर्मा की जान संयोगवश बच गई। आखिरकार कई गोलियों से उन्हें मिले जख्म भर गए। उस नृशंस हमले को याद करते हुए वर्मा ने कहा कि उन्हें उन्नाव में गंगा किनारे माफिया गिरोह द्वारा करवाए जा रहे अवैध रेत खनन के बारे में गुप्त सूचना मिली थी। जब वह खनन स्थल पर पहुंचे तो अतुल सेंगर और उसके गर्गे ने पुलिस पर गोलीबारी शुरू कर दी। वर्मा ने कहा, "मुझे चार गोलियां मारी गईं (छाती के पास और पेट में)। मेरी किस्मत अच्छी थी कि मुझे समय पर एक अस्पताल ले जाया गया। उस गोलीबारी में कुलदीप सेंगर, भाई अतुल और उनके कई गुर्गे शामिल थे।"

उनके मुताबिक, चार बार के विधायक कुलदीप सेंगर अपने रसूख की बदौलत मामले की जांच और मुकदमे की सुनवाई को प्रभावित किया करते थे। उन्होंने जोर देकर कहा, "मुकदमे की स्थिति का पता लगाने के लिए मुझे आरटीआई फाइल करनी पड़ी थी। एक आईपीएस अधिकारी होने के बावजूद मेरे साथ जो हुआ, वह बेहद निराश करनेवाला है।..मुझे ड्यूटी निभाते समय लगभग मार ही दिया गया था। मगर उस मामले की सुनवाई अभी तक शुरू नहीं हुई है।" उन्होंने कहा, "मैं एक प्रशिक्षण के सिलसिले में अभी चेन्नई में हूं। मैं जब कानपुर पहुंचूंगा, तब आपको इस मामले की जांच की प्रगति से जुड़े सभी ब्योरे उपलब्ध कराऊंगा।"

सीएम योगी के करीबी माने जाते  हैं सेंगर।
सीएम योगी के करीबी माने जाते  हैं सेंगर।

संयोगवश, वर्मा के बेटे अभिषेक वर्मा भी उत्तर प्रदेश कैडर के 2016 बैच के आईपीएस अधिकारी के रूप में चयनित हो गए। शीर्ष पुलिस परिवार से होने के बावजूद वर्मा न्याय पाने और अपने मुकदमे की सुनवाई के लिए अपने बेटे के साथ मिलकर संघर्ष कर रहे हैं। राम लाल वर्मा के एक बैच मित्र व यूपी में पदस्थ एक डीआईजी ने कहा, "सच तो यह है कि सेंगर उत्तर प्रदेश में शक्तिशाली राजनेता होने के नाते इस मामले की जांच रुकवाने में कामयाब रहे हैं। महत्वपूर्ण केस डायरियां चोरी हो चुकी हैं। गवाहों को धमका दिया गया है। दुख की बात यह है कि ये सब उस मुकदमे में हो रहा है, जिसमें एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी पीड़ित है। भारत के प्रधान न्यायाधीश को भी वर्मा के मामले पर संज्ञान लेना चाहिए।" वर्मा के बैच मित्र ने आगे खुलासा किया कि राज्य में रेत खनन का धंधा चलानेवालों पर प्रभुत्व रखनेवाले सेंगर के खिलाफ कार्रवाई करने से वरिष्ठ पुलिस अधिकारी तक डरते हैं।

दोनों परिवारों के बीच 18 साल पुरानी है दुश्मनी, कभी थे दोस्त

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उन्नाव रेप कांड की पीड़िता के परिवार और आरोपी विधायक कुलदीप सेंगर के बीच दुश्मनी का रिश्ता 18 साल पुराना है. यही वजह है कि पीड़िता की चाची और मौसी की मौत का इल्जाम भी विधायक सेंगर के सिर पर है. इससे पहले पीड़िता के ताऊ, फिर पिता की मौत के लिए भी विधायक को ही ज़िम्मेदार ठहराया गया था. यहां तक कि पीड़िता के चाचा को हत्या की कोशिश के मुकदमे में फंसाने के लिए भी साजिश रचने का इल्जाम विधायक सेंगर पर ही है.

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के कड़े फैसले के बाद अब हर कोई जानना चाहता है कि आखिर 18 साल पहले पीड़िता के परिवार और विधायक के बीच रंजिश शुरू कैसे हुई थी? हम आपको बताते हैं. दरअसल, इस कहानी की शुरूआत उन्नाव जिले के माखी गांव से होती है. माखी गांव के सराय थोक मोहल्ला में आरोपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर और पीड़ित लड़की का घर है. दोनों घरों के बीच करीब 50 कदम का फासला है.

कहानी में हम आपको कुछ साल पीछे लेकर चलते हैं. माखी गांव के सराय थोक मोहल्ले में तीन भाई रहा करते थे. तीनों भाई इलाके में दबंग के तौर पर जाने जाते थे. इन पर कई अलग-अलग मुकदमे भी दर्ज थे. पीड़िता के ताऊ की करीब 15 साल पहले गांव में ही पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी.

पीड़िता का चाचा इस वक्त रायबरेली जेल में बंद है. उसी से मिलने के लिए रविवार को पीड़िता जेल जा रही थी. जबकि पप्पू सिंह पीड़िता के पिता थे. जिनकी विधायक के भाई और उसके गुर्गों के हाथों पिटाई के बाद 2017 में मौत हो गई थी.

यानी पीड़ित लड़की के ताऊ और पिता दोनों मारे जा चुके हैं. जबकि पीड़िता का चाचा हत्या की कोशिश के एक मामले में रायबरेली की जेल में दस साल की सजा काट रहा है. और इसी चाचा की पत्नी और साली की भी अब उसी सड़क हादसे में मौत हो चुकी है, जिसे लेकर तमाम शक और सवाल उठ रहे हैं.

अब यहां जो सबसे अहम बात है वो ये कि एक ताऊ की मौत को छोड़ दें तो बाकि हर मौत और चाचा के जेल जाने को लेकर सीधे उंगली विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की तरफ उठ रही है. यहां तक कि रेप का इल्ज़ाम भी उसी के सिर है. और अब इस सड़क हादसे का शक उसी पर जा रहा है. पर ऐसा क्यों? क्यों करीब डेढ़ दशक में एक पूरा परिवार बिखर गया? रेप पीड़ित लड़की के और विधायक के परिवार के बीच क्या कोई पुरानी दुश्मनी है? अगर हां तो किस बात पर?

तो कहानी शुरू होती है 2002 में. तब से पहले तक कुलदीप सिंह सेंगर और पीड़ित लड़की के ताऊ, चाचा और पिता से कुलदीप सिंह सेंगर की खूब बनती थी. सभी का एक-दूसरे के घर आना जाना था. खाना-पीना था. 2002 में जब कुलदीप सिंह सेंगर पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ रहा था, तब पीड़ित लड़की के ताऊ, चाचा और पिता ने सेंगर को चुनाव जितवाने में भरपूर मदद की थी.

मगर पहली बार विधायक बनने के बाद कुलदीप सिंह सेंगर ने अचानक तीनों भाइयों से किनारा करना शुरू कर दिया. इसके बाद दोनों परिवारों के बीच दरार पड़नी शुरू हो गई. धीरे-धीरे ये दरार आपसी रंजिश में बदल गई. इसी बीच ग्राम प्रधान का चुनाव आ गया. तब सेंगर को सबक सिखाने के लिए पीड़ित लड़की के ताऊ ने खुद प्रधानी का चुनाव लड़ने का फैसला किया.

उधर, दूसरी तरफ विधायक सेंगर की मां चुन्नी देवी प्रधानी का चुनाव लड़ रही थीं. तब पहली बार था, जब दोनों परिवार आमने-सामने थे. हालांकि चुनाव से ऐन पहले कुलदीप सिंह सेंगर ने पीड़िता के ताऊ के मुकदमों को हथियार बना कर उसकी उम्मीदवारी खारिज करा दी थी. लिहाज़ा अब उसकी जगह उसके करीबी देवेंद्र सिंह की मां को चुनाव में उतार दिया गया. इसी प्रधानी के चुनावी प्रचार के दौरान पीड़िता के परिवार और सेंगर परिवार के बीच झड़प हो गई थी. बाद में विधायक सेंगर की तरफ से पुलिस ने महेश सिंह के खिलाफ हत्या की कोशिश का मामला दर्ज किया था.

इन दोनों परिवारों के बीच की आपसी दुश्मनी में पहला कत्ल पीड़िता के ताऊ का हुआ था. गांव में ही कुछ लोगों ने ईंट-पत्थरों से हमला करे उसे मार दिया था. उसकी हत्या की साजिश रचने का इलज़ाम तब विधायक कुलदीप सेंगर पर ही लगाया था. भाई की मौत के फौरन बाद पीड़ित लड़की का चाचा उन्नाव छोड़ कर गायब हो गया. फिर करीब 17 साल बाद 2018 में उसे दिल्ली के करीब से पकड़ा गया और अब उसी मामले में वो रायबरेली जेल में दस साल की सजा काट रहा है.

4 जून 2017 को 17 वर्षीय पीड़िता ने इल्ज़ाम लगाया कि विधायक सेंगर ने अपने घर पर उसकी अस्मत लूटी. इस इल्ज़ाम के बाद विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के भाई अतुल सिंह और उसके साथियों ने पीड़ित लड़की के पिता को बुरी तरह पीटने के बाद पुलिस को सौंप दिया था. तब पीड़िता के पिता ने कहा भी था कि उन्हें फर्जी मामले में फंसाया जा रहा है. लेकिन पुलिस ने फिर भी आर्म्स एक्ट का मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल भेज दिया था. जहां दो दिन बाद ही उनकी मौत हो गई. ये दोनों परिवारों के बीच रंजिश में हुई दूसरी मौत थी.

और अब पीड़ित परिवार के परिवार में दो और मौत हो गई. एक चाची और दूसरी चाची की बहन की. चाची भी इस मामले में विधायक सेंगर के खिलाफ अहम गवाह थीं. जबकि खुद पीड़ित लड़की की हालत नाजुक बनी हुई है. ज़ाहिर है मामला सिर्फ रेप तक नहीं है. बल्कि ये एक पूरे परिवार के उजड़ने और उसे उजाड़ने का मामला है. इस पूरे केस की जड़ विधायक कुलदीप सिंह सेंगर का नाम आता है.

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