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आज भी लोगों की आंखों से बह रहा ''भोपाल गैस त्रासदी का दर्द''

[Edited By: Admin]

Tuesday, 3rd December , 2019 12:56 pm

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 35 साल पहले हुई गैस त्रासदी की यादें फिर ताजा हो गईं.  2-3 दिसंबर 1984 को यूनियन कार्बाइड नामक कंपनी के कारखाने में जहरीली गैस के रिसाव से हुई थी. आज भी इसका दर्द लोगों की आंखों से बह रहा है. कड़ाके की ठंड के रात में हुए इस हादसे में तकरीब 8000 लोगों की जान दो सप्ताह के भीतर चली गई थी. कई लोगों को फेफड़ों संबंधी बीमारी हो गई तो कई जिंदगी भर के लिए विकलांग हो गए.वो बच्चे भी इसके कहर से न बच सके जो उस वक्त गर्भ में थे. वहीं 8000 से ज्यादा लोग इसके दुष्प्रभाव की वजह से बीमार होकर दम तोड़ चुके हैं.


सरकारें बदलती रहीं और पीड़ितों का दर्द बढ़ता गया

पीड़ितों का दर्द कम होने की बजाय बढ़ता ही जा रहा है. साढ़े तीन दशकों में राज्य और केंद्र में सरकारें बदलती रहीं, लेकिन नहीं बदली पीड़ितों की किस्मत. इन्हें उतनी मदद नहीं मिली, जितने की सख्त जरूरत थी.

आईएएनएस की रिपोर्ट के न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक गैस पीड़ितों को न आर्थिक मदद मिली, न ठीक से स्वास्थ्य सेवाएं. हाल इतना बुरा है कि इन्हें पीने के लिए साफ और शुद्ध पानी तक नसीब नहीं है.

2-3 दिसंबर, 1984 की दरम्यानी रात यूनियन कार्बाइड संयंत्र से रिसी जहरीली गैस 'मिथाइल आइसो साइनाइड (मिक)' ने हजारों लोगों को एक ही रात में मौत की नींद सुला दिया था. उस मंजर के गवाह अब भी उस रात को याद कर दहशतजदा हो जाते हैं और वे उस भयावह रात को याद ही नहीं करना चाहते.

गैस का शिकार बने परिवारों की दूसरी और तीसरी पीढ़ी तक विकलांग पैदा हो रही है. शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग बच्चों के जन्म लेने का सिलसिला जारी है. इन्हीं बच्चों में से एक है, मोहम्मद जैद (15). इस बच्चे की जिंदगी बोझ बन गई है. उसे यह समझ में नहीं आ रहा कि उसे यह सजा आखिर क्यों मिल रही है? और विधवा मुमताज बी का क्या कसूर था जो जिंदगी पहाड़ बन गई?

एक चिंगारी ट्रस्ट है, गैस पीड़ितों पर रहम और मेहरबानी कर रहा है. इस ट्रस्ट की चंपा देवी शुक्ला और रशीदा बी बताती हैं कि उनके संस्थान में हर रोज 170 बच्चे आते हैं. इन बच्चों का यहां फिजियो थेरेपी, स्पीच थेरेपी, विशेष शिक्षा वगैरह उपलब्ध कराई जाती है. इन बच्चों को चिंगारी पुनर्वास केंद्र लाने और छोड़ने के लिए वाहन सुविधा है, साथ ही इन्हें नि:शुल्क मध्यान्ह भोजन भी उपलब्ध कराया जाता है.

इस डरावने मंजर पर बॉलीवुड में कई फिल्में भी बन चुकी हैं...

भोपाल एक्सप्रेस

भोपाल एक्सप्रेस 1999 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है. महेश मथाई के डायरेक्शन में बनी ये फिल्म दो नए शादीशुदा जोड़ों की कहानी थी जिनकी जिंदगी भोपाल गैस त्रासदी के बाद बिल्कुल बदल जाती है. फिल्म में केके मेनन, नसीरुद्दीन शाह जैसे कलाकारों ने काम किया था.

'भोपाल− ए प्रेयर फॉर रेन'


'भोपाल− ए प्रेयर फॉर रेन' नाम की फिल्म साल 2014 में रिलीज हुई थी. इस फिल्म में देसी कलाकारों के साथ-साथ हॉलीवुड अभिनेता कल पेन ने भी काम किया था. यह फिल्म भोपाल गैस त्रासदी से जुड़े कानूनी पहलू या इंसाफ को नहीं बल्कि फिल्म घटना को दर्शाती है. इस फिल्म के रिसर्च से लेकर फाइनल प्रिंट तक 7 साल का समय लगा.

'द यस मेन फिक्स द वर्ल्ड'

यह डॉक्यूमेंट्री फिल्मकार एंडी बिचलबम और माइक बोनान्नो ने मिलकर बनाई थी. फिल्म मुख्य रूप से भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों के हक और न्याय की लड़ाई पर केंद्रित थी.

'वन नाइट इन भोपाल'

बीबीसी ने 2004 में यह डॉक्यूमेंट्री बनाई थी, जिसमें भोपाल गैस त्रासदी पीड़ितों और भुक्तभोगियों के दर्द और अनुभवों को उन्हीं की जुबानी पर्दे पर चित्रित किया गया था.

फोटोग्राफ़र जूडा पासो ने उन लोगों की ज़िंदगी को तस्वीरों में उतारने की कोशिश की जो उस भयावह हादसे के जख़्मों के साथ जीने को मजबूर हैं.

शाकिर अली खान अस्पताल में सांस संबंधी समस्याओं की जांच के लिए एक्स-रे कराता एक मरीज.इमेज कॉपीरइटJUDAH PASSOW

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शाकिर अली ख़ान अस्पताल में सांस संबंधी समस्या की जांच के लिए एक्स-रे कराता एक मरीज. यह शख़्स हादसे के दौरान ज़हरीली गैस के संपर्क में आ गया था.

चिरायू कैंसर हॉस्पिटल में मरीज का इलाज़ करते डॉक्टरइमेज कॉपीरइटJUDAH PASSOW

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हादसे के पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए अभियान चालने वालों का कहना है कि ज़हरीली गैस के कारण करीब 20 हज़ार लोगों की जान चली गई थी. कई लोग अब भी उसके परिणाम झेल रहे हैं.

ब्लू मून कॉलोनी में रहने वालीं एक महिला
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ब्लू मून कॉलोनी में रहने वालीं एक महिला. 1984 में पांच लाख 50 हजार लोग इससे प्रभावित हुए थे, जो भोपाल की दो तिहाई जनसंख्या के बराबर है.

यहां के लोगों को पाइप के ज़रिए साफ़ पानी पहुंचाया जाता है.इमेज कॉपीरइटJUDAH PASSOW
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यहां के लोगों को पाइप के ज़रिए साफ़ पानी पहुंचाया जाता है. वैज्ञानिकों और अभियानकर्ताओं का मानना है कि मिट्टी और ज़मीन के पानी में लगातार केमिकल का रिसाव हुआ है.

पीड़ितों का कहना है कि बच्चे अब भी विसंगतियों के साथ पैदा हो रहे हैं.इमेज कॉपीरइटJUDAH PASSOW

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पीड़ितों का कहना है कि बच्चे अब भी विसंगतियों के साथ पैदा हो रहे हैं.

प्राची चुग को सेरेब्रल पाल्सी है और उनका ठीक से मानसिक विकास नहीं हो पाया है.
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प्राची चुग को सेरेब्रल पाल्सी है और उनका ठीक से मानसिक विकास नहीं हो पाया है. उनकी मां ज़हरीली गैस के संपर्क में आ गई थीं जिसके कारण गर्भ के अंदर ही प्राची पर गैस का असर हो गया.

भोपाल में संभावना ट्रस्ट क्लीनिक में एक पीड़ित का स्टीम थेरेपी से इलाज हो रहा है.
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भोपाल में संभावना ट्रस्ट क्लीनिक में एक पीड़ित का स्टीम थेरेपी से इलाज हो रहा है. ये क्लीनिक पारंपरिक आयुर्वेदिक दवाई के ज़रिए पीड़ितों का इलाज करता है.

चिंगारी ट्रस्ट फिजिकल-थेरेपी क्लीनिक में जिन बच्चों का इलाज हुआ उनके हाथों के निशान.
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चिंगारी ट्रस्ट फिजिकल-थेरेपी क्लीनिक में जिन बच्चों का इलाज हुआ उनके हाथों के निशान.


ओरिया प्राथमिक स्कूल में खेलते बच्चे. इस स्कूल का भविष्य भी अनिश्चित है.
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ओरिया प्राथमिक स्कूल में खेलते बच्चे. इस स्कूल का भविष्य भी अनिश्चित है.


भोपाल गैस त्रासदी के विरोध में प्रदर्शन करते लोग.
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पीड़ितों को दिये गये मुआवज़े को 1989 में सुप्रीम कोर्ट ने उचित बताया था. लेकिन, कई लोग मानते हैं कि और मुआवज़ा मिलना चाहिए और इलाक़े की ठीक से सफ़ाई होनी चाहिए.

सभी तस्वीरें फोटोग्राफर जुडा पासो की हैं.

नहीं था पहला हादसा 

यह पहला मौका नहीं था जब इस प्‍लांट से गैस रिसाव हुआ था बल्कि इससे पहले भी इस तरह के हादसे हो चुके थे. इसके बाद भी कंपनी प्रशासन ने इस ओर कोई ध्‍यान नहीं दिया और न ही सुरक्षा के उपाय चाक चौबंद रखे थे. यूं भी यह कंपनी हमेशा से ही विवाद की वजह रही है. 1976 में ट्रेड यूनियन ने इस प्‍लांट से प्रदूषण की बात उठाई थी. 1981 में भी गैस रिसाव की वजह से कुछ कर्मियों की मौत हो गई थी. इस घटना के बाद स्‍थानीय अखबार ने यहां तक लिखा था कि भोपाल के लोग ज्‍वा‍लामुखी पर बैठे हैं. जनवरी 1982 में भी इसी तरह के गैस रिसाव से 24 कर्मी इसकी चपेट में आ गए थे. इसी वर्ष फरवरी में फिर इसी तरह का हादसा हुआ था और 18 कर्मचारी जहरीली गैस की चपेट में आ गए थे. अगस्‍त 1982 में गैस रिसाव के चलते एक इंजीनियर 30 फीसद तक झुलस गया था. अक्‍टूर 1982 में भी ऐसा ही हादसा फिर हुआ. इसमें सुपरवाइजर समेत तीन कर्मचारी चपेट में आ गए थे. 1983 और 1984 में भी इसी तरह के हादसे होते रहे लेकिन कंपनी ने कुछ नहीं किया.

मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कही ये बातें

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भोपाल गैस त्रासदी में 35 साल पहले असमय काल कवलित हुए सैकड़ों निर्दोष लोगों को श्रद्धांजलि देते हुए पर्यावरण प्रदूषण के प्रति हमेशा सतर्क और सजग रहने का आह्वान किया है. उन्होंने सोमवार को कहा कि ऐसा दर्दनाक हादसा फिर कभी न हो, इसके लिए नागरिकों को सतर्कता रहना जरूरी है.

मुख्यमंत्री ने कहा कि विश्व की भीषणतम औद्योगिक त्रासदी के जो भयानक दुष्परिणाम भोपाल ने देखे हैं, वह सभी के लिए एक सबक है. पर्यावरण की अनदेखी करते हुए आगे ऐसी कोई दुर्घटना न हो, जो निर्दोष लोगों के लिए जानलेवा बने.

मुख्यमंत्री ने कहा कि गैस हादसे ने भोपाल के रहवासियों को गहरे जख्म दिए हैं. राहत-पुनर्वास के साथ बेहतर इलाज प्रभावितों को मिले यह सरकार की जिम्मेदारी है.

मुख्यमंत्री ने गैस त्रासदी की बरसी पर भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक रहे मरहूम अब्दुल जब्बार का उल्लेख करते हुए कहा कि जब्बार ने गैस पीड़ितों, विशेषकर महिलाओं के राहत-पुनर्वास और इलाज के लिए जीवन र्पयत संघर्ष किया. आज के दिन बरबस ही उनकी याद आती है.

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