आज हम बात करने जा रहे हैं इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक ऐसे फैसले की जिसके बाद हर तरफ हंगामा बरपा है, दिल्ली में जो निर्भया कांड हुआ उसके बाद जो फैसला आया कानून कड़े बनाए गए उसमें एक यह भी कानून था कि 10 सेकंड से ज्यादा अगर किसी को घूरा गया तो वह भी अपराध माना जाएगा अब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक नया फैसला सुनाया है तो नई बहस अब छिड़ चुकी है।

हाई कोर्ट ने कासगंज जिले की तीन आरोपियों को बड़ी राहत देते हुए उनके खिलाफ ट्रायल कोर्ट से जारी समन आदेश में बदलाव करने के लिए कहा है इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने कहा कि बलात्कार का प्रयास साबित करने के लिए यह दिखाना जरूरी है कि अपराध की योजना तैयारी के चरण से आगे बढ़ चुकी थी यह साबित नहीं हुआ कि आरोपियों का इरादा बलात्कार करने का था पीड़िता के कपड़े पूरी तरह से नहीं उतारे गए थे इसलिए इसे बलात्कार का प्रयास नहीं कहा जा सकेगा। सवाल ये है कि अगर बच्ची पूरी तरह निर्वस्त्र नहीं हुई तो क्या इसका मतलब ये है कि यह अपराध कम गंभीर हो गया क्या इस फैसले से अपराधियों को कानूनी बचाव का एक नया रास्ता मिल जाएगा आखिर कोर्ट ने यह कैसे तय किया कि इन हरकतों के पीछे बलात्कार का इरादा नहीं था क्या अदालत को ऐसे मामलों में अपराध की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए कड़े फैसले नहीं लेने चाहिए थे ?
साल 2021 में यूपी के कासगंज में पवन और आकाश नाम के दो व्यक्तियों पर एक नाबालिग लड़की से रेप करने की कोशिश करने का आरोप लगा पीड़िता के परिजनों ने इल्जाम लगाया था कि आरोपियों ने नाबालिक को लिफ्ट देने के बहाने उसका रेप करने की कोशिश की
कासगंज की एक अदालत ने आरोपियों को आईपीसी की धारा 376 और पोक्सो अधिनियम की धारा 18 के तहत दर्ज मुकदमे में समन किया था इसके बाद आरोपियों ने निचली अदालत के समन को हाईकोर्ट में चुनौती भी दी थी आरोपियों की ओर से तर्क यह दिया गया था कि उन्होंने
आईपीसी की धारा 376 के तहत कोई अपराध नहीं किया है
यह मामला सिर्फ धारा 354 354 बी और पोक्सो अधिनियम के तहत ही आ सकता है
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी इस पर सहमति दिखाई और 17 मार्च 2025 को दिए आदेश में जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने कहा कि रेप के प्रयास का आरोप लगाने के लिए यह साबित करना होगा कि यह तैयारी के चरण से आगे की बात थी अपराध करने की तैयारी और वास्तविक प्रयास के बीच अंतर होता है
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुनाया है कि किसी भी नाबालिक बच्ची के वक्ष स्थल को छूना रेप या रेप के प्रयास की श्रेणी में नहीं माना जाएगा इसे महज़ यौन उत्पीड़न माना जाएगा। 2022 में मेघालय हाईकोर्ट ने एक मामले में यह अहम फैसला देते हुए कहा था कि कपड़ों के ऊपर से महिला के प्राइवेट पार्ट को छूना रेप माना जाएगा। रेप की व्याख्या करते हुए मेघालय हाईकोर्ट ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के तहत रेप के मामलों में सिर्फ पेनिट्रेशन जरूरी नहीं है।
आईपीसी की धारा 375 (बी) के मुताबिक किसी भी महिला के प्राइवेट पार्ट में मेल प्राइवेट पार्ट का पेनिट्रेशन रेप की श्रेणी में आता है। ऐसे में पीड़िता ने भले ही घटना के समय अंडरगारमेंट पहना हुआ था, फिर भी इसे पेनिट्रेशन मानते हुए रेप कहा जाएगा।’ यह मामला 2006 का था। इसने अब एक नई बहस छेड़ दी है और इससे सवाल भी यही खड़े हो रहे हैं कि क्या इससे अपराधियों को शय नहीं मिलेगी ? जो टेक्निकल पॉइंट रेप-रेप के प्रयास और छेड़खानी या यौन उत्पीड़न के बीच बताया गया है इस एक फैसले से कहीं ना कहीं ऐसी घटनाएं बढ़ सकती हैं। कोई भी अपराधी अगर महिला को गलत तरीके से छूता है तो उसके अंदर डर नहीं रहेगा कि मुझे बड़ी सजा हो सकती है।