देशभर मे आज हनुमान जयंती का पर्व धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है. मान्यता है कि आज जयंती के दिन ही हनुमान जी का जन्म हुआ था। हनुमान जयंती चैत्र पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। इस दिन महावीर हनुमान जी की उपासना करने से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मंगलवार का दिन हनुमान जी को समर्पित है. इस दिन हनुमान जी की पूजा-आराधना करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
ज्योतिषीयों के अनुसार हनुमान जी का जन्म त्रेतायुग के अन्तिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे भारत देश में आज के हरियाणा राज्य के कैथल जिले में हुआ था, जिसे पहले कहां जाता था कपिस्थल। इन्हें बजरंगबली बाबा के रूप में जाना जाता है बजरंगबली के बहुत से नाम हैं. बजरंगबली एक ऐसा नाम है जिसे सुनने से या पुकाने से उर्जा प्राप्त होती है। बजरंगबली उनका नाम का अर्थ है बहुत शक्तिशाली है. बताया गया है बजरंगबली का शरीर वज्र के समान है. इसीलिए भक्त उन्हें बजरंगबली कहते हैं. क्योंकि इनका शरीर एक वज्र की तरह है। वे पवन-पुत्र के रूप में भी जाने जाते हैं। हनुमान वानरों के राजा केसरी और उनकी पत्नी अंजना के छः पुत्रों में सबसे बड़े और पहले पुत्र हैं। रामायण के अनुसार वे जानकी के अत्यधिक प्रिय हैं। इस धरा पर आठ चिरंजीवी हैं उनमें से सात को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं तथा एक को श्राप के कारण अमरत्व मिला। हनुमान जी का अवतार भगवान राम की सहायता के लिये हुआ। हनुमान जी के पराक्रम की असंख्य गाथाएँ प्रचलित हैं।
हनुमान जी के धर्म पिता वायु देव थे, इसी कारण उन्हे पवन पुत्र के नाम से भी जाना जाता है। बचपन से ही दिव्य होने के साथ साथ उनके अन्दर असीमित शक्तियों का भण्डार था। इनके जन्म के पश्चात् एक दिन वे उदय होते हुए सूर्य को फल समझकर उसे खाने के लिए उसकी ओर जाने लगे थे। हनुमान जी बालपन मे बहुत ही नटखट थे, वो अपने इस स्वभाव से साधु-संतों को परेशान कर देते थे। वे बहुधा वो उनकी पूजा सामग्री और आदि कई वस्तुओं को छीन-झपट लेते थे। उनके इस नटखट बालपन स्वभाव से रुष्ट होकर साधुओं ने उन्हें अपनी शक्तियों को भूल जाने का एक शाप दे दिया। इस शाप के प्रभाव से हनुमान अपनी सभी शक्तियों को अस्थाई रूप से भूल जाते थे और फिर पुन किसी अन्य के याद कराने पर ही उन्हें अपनी अपार शक्तियों का स्मरण होता था। ऐसा माना जाता है कि अगर हनुमान शाप से मुक्त हो तो वे स्वयं ही रावण सहित सम्पूर्ण लंका को अकेले ही समाप्त देते।
मान्यता के अनुसार एक बार भगवान शिव ने विष्णुजी को उनके मोहिनी रूप में प्रकट होने की इच्छा व्यक्त की जो उन्होंने समुद्र मंथन के वक्त सुर और असुरों को दिखाया था। भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर लिया। भगवान विष्णु का आकर्षक रूप देखकर शिवजी कामातुर हो गए और उन्होंने अपना वीर्यपात कर दिया। पवनदेव ने यह वीर्य राजा केसरी की पत्नी अंजना के गर्भ में प्रविष्ट कर दिया। इससे वह गर्भवती हो गईं और फिर हनुमानजी का जन्म हुआ।
पौराणिक कथा के अनुसार, हनुमान जी का नाम बचपन में मारुति था। एक बार मारूति को उनके दोस्त मे लालच दी फिर वही हनुमानजी ने चमचमाते हुए सूरज को देखा और वह उसे देखकर बहुत ही उत्तेजित हुए और फिर उन्होंने सूरज को फल समझकर खाने का फैसला किया। हालांकि की सूरज तक पहुचने के लिए कई बाधा आई फिर भी वे नही माने और सूरज को निगल गए इसके बाद संपूर्ण संसार में अंधकार छा गया। तब सभी देवता परेशान हो गए और मारुति को मनाने के लिए आ गए लेकिन, मारुति हटा करके बैठ गए और अतं तक नहीं माने ऐसे में विवश होकर भगवान इंद्र को अपना व्रज उठाना पड़ा। इंद्र देव ने अपने व्रज से मारुति के हनु जिसे ठोड़ी पर प्रहार किया, जिससे हनुमानजी का हनु यानी ठुड्डी पर प्रहार किया, जिससे हनुमानजी का हनु टूट गया इसके कारण ही उनका नाम हनुमान पड़ गया।
पौराणिक कथा के अनुसार, हनुमानजी वानरराज केसरी और अंजनी के पुत्र थे। केसरी को ऋषि मुनियों ने अत्यंत बलशाली और सेवाभावी संतान होने का आशीर्वाद दिया था। इसीलिए हनुमान का शरीर लोहे के समान कठोर था। इसीलिए उन्हें वज्रांग कहा जाने लगा। बहुत ही शक्तिशाली होने से वज्रांग के साथ बली शब्द भी जुड़ गया और हनुमानजी का नाम हो गया वज्रांगबली जो बोलचाल की भाषा में बना बजरंगबली। वैसे उनका बचपन का नाम मारुति था।