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कांग्रेस ने सिद्धारमैया को सीएम बनाने और डीके शिवकुमार को डिप्टी सीएम बनाने का फैसला किया

[Edited By: Rajendra]

Thursday, 18th May , 2023 01:34 pm

कर्नाटक में सीएम पद को लेकर आखिरकार कांग्रेस का नाटक खत्म हो गया है। बीते चार दिनों तक चले ड्रामे के बाद सिद्धारमैया को सीएम बनाने और डीके शिवकुमार को डिप्टी सीएम बनाने का फैसला किया गया। इससे पहले डीके शिवकुमार भी कर्नाटक का अगला सीएम बनने के लिए अड़े बैठे थे। आखिरकार उन्होंने कांग्रेस आलाकमान की बात मानते हुए डिप्टी सीएम का पद स्वीकार कर लिया।

कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने पार्टी को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी और इसी का फल वो सीएम पद पाकर लेना चाहते थे, लेकिन नवनिर्वाचित विधायक और पार्टी आालाकमान का अलग ही इरादा था। इसी कारण उन्होंने बड़े नेताओं के मनाने के बाद डिप्टी सीएम का पद लेने की बात मानी। शिवकुमार ने कहा कि उन्होंने कांग्रेस पार्टी के व्यापक हित में यह फैसला किया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी की कर्नाटक के लोगों के सामने प्रतिबद्धता है। डीके ने कहा कि संसदीय चुनाव आगे हैं और मुझे AICC अध्यक्ष और गांधी परिवार की सुननी ही होगी। उन्होंने कहा कि पार्टी के व्यापक हित में।। कभी-कभी बर्फ टूटती है।

शिवकुमार के भाई डीके सुरेश ने इससे पहले कहा था, ''मैं पूरी तरह से खुश नहीं हूं, लेकिन कर्नाटक के हित में हम अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करना चाहते थे, इसलिए डीके शिवकुमार को इसे स्वीकार करना पड़ा। भविष्य में हम देखेंगे, अभी एक लंबा रास्ता तय करना है।

कर्नाटक में मुख्यमंत्री पद को लेकर सस्पेंस खत्म हो गया है। सिद्धारमैया 20 मई को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे, जबकि कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार को डिप्टी सीएम पद पर संतोष करना पड़ा है। उनकी नाराजगी दूर करने के लिए आलाकमान ने उन्हें अहम मंत्रालय देने का भी वादा किया है।

कांग्रेस ने गुटबाजी से बचने के लिए कर्नाटक विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया था। पार्टी ने ये चुनाव आलाकमान के नेतृत्व में लड़ा। हालांकि, समय समय पर प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया सीएम पद के लिए अपनी अपनी दावेदारी पेश करते रहे। कांग्रेस ने इस चुनाव में बीजेपी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाते हुए प्रचंड जीत हासिल की। जीत के बाद कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी कि दक्षिण का द्वार कहे जाने वाले कर्नाटक में किसे मुख्यमंत्री बनाया जाए। चार दिन तक कर्नाटक से दिल्ली तक कई दौर की बैठकें हुईं। सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार को भी राजधानी तलब किया गया। आखिर में सिद्धारमैया इस रेस में आगे निकल गए। आलाकमान ने उन्हें सीएम की कुर्सी सौंप दी, आइए जानते हैं कि सिद्धारमैया कैसे डीके शिवकुमार पर कैसे भारी पड़ गए।

सिद्धारमैया कांग्रेस के कर्नाटक में सबसे बड़े नेताओं में से एक हैं। कर्नाटक में कांग्रेस ने बीजेपी के हिंदुत्व कार्ड का मुकाबला करने के लिए सामाजिक न्याय के मुद्दे पर चुनाव लड़ा था। राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार के दौरान जाति आधारित जनगणना की वकालत और 'जितनी आबादी, उतना हक' की मांग उठाकर 'ओबीसी और दलित कार्ड' खेला था। राहुल ने एक सभा में कहा था, पीएम अगर ओबीसी को ताकत देना चाहते हैं तो पहले ये समझना होगा कि देश में ओबीसी कितने हैं। अगर हमें यही नहीं मालूम तो उन्हें ताकत कैसे दे सकते हैं।

सिद्धारमैया भी कुरुबा समुदाय (ओबीसी) समुदाय से आते हैं। वे राज्य में सबसे बड़े ओबीसी नेता माने जाते हैं। ऐसे में 2024 चुनाव में ओबीसी वोट को अपने पक्ष में करने के लिए कांग्रेस के पास सिद्धारमैया से अच्छा कोई चेहरा नहीं था। सिद्धारमैया ने सीएम रहते गरीबों के लिए कई ऐसी योजनाओं की शुरुआत की थी, जिनसे वे राज्य में सामाजिक न्याय का चेहरा बनकर उभरे थे। उन्होंने सीएम रहते राज्य में जातिगत जनगणना कराई थी।

सिद्धारमैया भले ही कुरुबा समुदाय (ओबीसी) से आते हैं लेकिन उनका दलित, अल्पसंख्यक, आदिवासी समाज में भी जनाधार है। 2013 से 2018 तक राज्य के सीएम रहते उन्हें गरीबों के लिए कई योजनाएं चलाई थीं। उन्होंने अन्न भाग्य योजना की शुरुआत की थी, इसके तहत गरीबों को 7 किलोग्राम चावल दिया गया। इसके अलावा उन्होंने इंदिरा कैंटीन की शुरुआत की। उन्होंने गरीबों के इलाज के लिए राज्य में आरोग्य भाग्य, गर्भवती महिलाओं के लिए मातृ पूर्णा योजना चलाई। इतना ही नहीं उन्होंने राज्य में गरीबों के लिए 7 लाख घर (6 लाख ग्रामीण क्षेत्रों, 1 लाख बेंगलुरु में) बनाने की योजना की भी शुरुआत की थी। इसके चलते उनकी हर समुदाय में स्वीकार्यता बढ़ी।

कांग्रेस सिद्धारमैया के 'अहिंदा' कार्ड का फायदा उठाना चाहती है। अहिंदा यानी अल्पसंख्यक, ओबीसी, दलित। इन तीनों को मिलाकर कर्नाटक में अहिंदा कहा जाता है। इस विधानसभा चुनाव में अहिंदा ने बड़ी संख्या में कांग्रेस को वोट दिया है। कांग्रेस इस ट्रेंड को 2024 लोकसभा चुनाव में भी कायम रखना चाहती है।

सिद्धारमैया ने अपने राजनीतिक जीवन में 12 चुनाव लड़े, इनमें से 9 में जीत हासिल की। सिद्धारमैया 2013 से 2018 तक कर्नाटक के सीएम रहे। वे इससे पहले 1994 में जनता दल सरकार में कर्नाटक के उप-मुख्यमंत्री थे।सिद्धारमैया ने सीएम रहते अपने कार्यकाल को बखूबी निभाया। इस दौरान उनकी अच्छी प्रशासनिक पकड़ रही। यही वजह है कि पार्टी ने उन्हें डीके शिवकुमार की तुलना में अधिक तवज्जो दी। इतना ही नहीं सिद्धारमैया कर्नाटक के तीसरे ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने 2013 से 2018 तक अपना कार्यकाल पूरा किया था। उनसे पहले पूर्व सीएम एस निजलिंगप्पा और डी देवराज उर्स ही अपना कार्यकाल पूरा कर सके हैं।

इतना ही नहीं कर्नाटक की राजनीति में भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा रहा है। यहां सीएम से लेकर मंत्री पद पर रहे कई नेताओं को न सिर्फ अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी, बल्कि जेल भी जाना पड़ा। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को भी भ्रष्टाचार के मामले में जेल जाना पड़ा था। बोम्मई सरकार के खिलाफ भी भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन सिद्धारमैया ऐसे नेता हैं, जो लंबे समय से राजनीति में हैं और उनकी छवि बेदाग रही है। कर्नाटक के सीएम और डिप्टी सीएम रहते हुए उनपर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं लगा।

कांग्रेस ने कर्नाटक की जनता को चुनाव से पहले 5 गारंटी दी थीं। अब राज्य में कांग्रेस की सरकार बन गई है। ऐसे में कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती इन योजनाओं को पूरा करना है। इन योजनाओं को पूरा करने के लिए कर्नाटक सरकार को हर साल 53 हजार करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। 2023 में 5 राज्यों में चुनाव होने हैं, ऐसे में कांग्रेस का पूरा फोकस इन 5 गारंटी को जल्द से जल्द पूरा करके संदेश देना है कि उसने घोषणा पत्र में किए गए वादों को पूरा किया। इसलिए कांग्रेस का फोकस ऐसा सीएम चुनने पर था, जिसके पास पहले से अनुभव हो। सिद्धारमैया एक बार सीएम रह चुके हैं। वे योजनाओं को लागू कराने के लिए जाने जाते हैं। ऐसे में कांग्रेस ने सिद्धारमैया पर दांव खेला।

डीके कर्नाटक के सियासी तौर पर अहम माने जाने वाले वोक्कालिगा समुदाय के सबसे बड़े नेताओं में से एक हैं। इस समुदाय का कर्नाटक में 50 सीटों पर प्रभाव माना जाता है। भले ही संगठन पर डीके की पकड़ मानी जाती रही हो, लेकिन कहीं न कहीं उनकी छवि एक समुदाय और एक इलाके के नेता के तौर पर रही है। वे सिद्धारमैया की तरह लोकप्रिय जननेता नहीं हैं। इतना ही नहीं कांग्रेस अगर डीके को सीएम बनाती तो यह संदेश जाता कि वोक्कालिगा समुदाय को ज्यादा तवज्जो दी गई। ऐसे में कांग्रेस के वोटर अन्य समुदाय नाराज हो सकते थे। इससे 2024 में कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता था।

कर्नाटक चुनाव नतीजों के बाद विधायक दल की बैठक हुई थी। बैठक में प्रस्ताव पास हुआ था कि सीएम पर फैसला आलाकमान करे। लेकिन इस बैठक में ज्यादातर विधायकों ने सिद्धारमैया को सीएम बनाने की बात कही थी। दिल्ली रवाना होने से पहले सिद्धारमैया ने दावा किया था कि राज्य के ज्यादातर विधायक उन्हें सीएम बनता देखना चाहते हैं। इतना ही नहीं उन्होंने दावा किया था कि उन्हें 90 विधायकों का समर्थन है। वहीं, डीके शिवकुमार ने प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते सभी 135 विधायकों के समर्थन की बात तो कही, लेकिन वे ये नहीं बता पाए कि कितने विधायक ऐसे हैं, जो उन्हें सीएम बनते देखना चाहते हैं।

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