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कांग्रेस नेता सचिन पायलट और अशोक गहलोत में एक बार फिर कड़वाहट सामने आई

[Edited By: Rajendra]

Friday, 20th January , 2023 02:08 pm

राजस्थान में विधानसभा चुनाव नजदीक आने के साथ कहां तो कांग्रेस को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से लड़ने की तैयारी करनी थी, लेकिन पार्टी एक बार फिर आंतरिक कलह में उलझती दिख रही है। प्रदेश में पार्टी के दो सबसे बड़े नेता अशोक गहलोत और सचिन पायलट एक दूसरे पर खुलकर वार-पलटवार करने में जुट गए हैं। राजनीतिक जानकारों की मानें तो जिस तरह लंबे समय तक सब्र किए बैठे सचिन पायलट ने भी खुलकर बोलना शुरू कर दिया है उससे हालात एक बार फिर 2020 जैसे होने के आसार बढ़ गए हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या चुनाव से पहले कांग्रेस दो फाड़ हो जाएगी?

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ जारी वर्चस्व की लड़ाई के बीच कांग्रेस नेता सचिन पायलट अपने वफादार मंत्रियों और विधायकों के साथ रैलियां करना शुरू कर दिया है। उनके इस कदम ने राजस्थानी के सियासी गलियारों की सरगर्मी बढ़ा दी है। उनके इस कदम को अगले विधानसभा चुनाव से पहले खुद को मुख्यमंत्री पद का मजबूत दावेदार बनाने की दिशा में एक कोशिश की तरह देखा जा रहा है। हालांकि, उनके तेवर कई सवाल खड़े कर रहे हैं। रैलियों को दौरान वह बीजेपी से अधिक अपनी ही सरकार को घेरते नजर आते हैं।

सचिन पायलट ने 16 जनवरी के बाद से परबतसर, पीलीबंगा, गुढ़ा और बाली में रैलियां की हैं। वह 20 जनवरी को जयपुर में इसका समापन करेंगे। ऐसा प्रतीत होता है कि पायलट ने अपनी रैलियों के समय को अच्छी तरह से काम किया है। वह 23 जनवरी से शुरू होने वाले राज्य के बजट सत्र के लिए एजेंडा सेट करना चाहते हैं। पहली दो रैलियों के दौरान अशोक गहलोत का चिंतन शिविर (16-17 जनवरी) चल रहा था।

कांग्रेस आलाकमान की ओर से अभी तक इस बात पर कुछ भी नहीं कहा गया है कि क्या उसने पायलट को रैलियों की इजाजत दी है या नहीं। आलाकमान की चुप्पी ने राजस्थान के सियासी गलियारों को चर्चा करने और कयास लगाने का मौका दे दिया है। आपको बता दें कि कांग्रेस को इसी वर्चस्व की लड़ाई के कारण पंजाब में अपनी सरकार गवानी पड़ गई थी। पंजाब में कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी जैसे कमजोर नेता को अमरिंदर सिंह की जगह मुख्यमंत्री बनाया था। पंजाब प्रकरण से सीख लेते हुए आलाकमान शायद अशोक गहलोत के साथ ही चलने का फैसला किया है। सचिन पायलट को अब अपने आधार वोट को बढ़ाने की आवश्यक्ता दिखने लगी है।

पायलट ने अपनी रैलियों को किसान सम्मेलन बताया है। उन्होंने किसानों की सुध न लेने के लिए भाजपा पर सवाल उठाया है। साथ ही उन्होंने 2004 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए उन्हें टिकट देने के लिए सोनिया गांधी का भी आभार प्रकट किया। हालांकि, इस दौरान वह बीजेजी को लेकर उस हद तक आक्रामक नहीं दिखे। विभिन्न सरकारी भर्ती परीक्षाओं के प्रश्न पत्र लीक करने वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने के लिए उन्होंने अपनी ही सरकार पर सवाल उठाया। वहीं, गहलोत ने भी पायलट के आरोपों पर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि अगर पायलट उन्हें संदिग्धों का नाम देंगे तो वह कार्रवाई जरूर करेंगे। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि इसमें कोई अधिकारी या नेता शामिल नहीं हैं। पायलट ने पलटवार करते हुए पूछा, अगर कोई अधिकारी या नेता शामिल नहीं है तो तिजोरी में बंद प्रश्न पत्र कैसे लीक हो सकता है?

सचिन पायलट ने आरोप लगाया कि अशोक गहलोत रिटायर अधिकारियों को उनके पदों पर फिर से नियुक्त कर रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि गहलोत उन अधिकारियों का उपकार कर रहे हैं जिन्होंने उन्हें बचाए रखने में मदद की है।

इससे इतर सचिन पायलट ने अपनी रैलियों के लिए चतुराई से जगहों का चयन किया है। अभी तक उन्हें सिर्फ गुर्जर जाति का नेता माना जाता था। पायलट रैलियों के जरिए अपना वर्चस्व दूसरी जातियों में भी दिखाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने जाट, दलित, आदिवासी, राजपूत और शहरी युवाओं में अपनी बैठ बनाने की कोशिश की है। कुछ सियासी पंडितों का कहना है कि पूरे राजस्थान में उनकी रैलियां अशोक गहलोत को परेशान कर सकता है। वहीं, कुछ का कहना है कि पायलट कांग्रेस कार्यकर्ताओं को लामबंद कर रहे हैं, जो अंततः पार्टी की मदद करेगा। वह दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों में टिकट वितरण के लिए अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।

इन दिनों किसान सम्मेलनों के जरिए अपनी ताकत दिखाने और बढ़ाने में जुटे सचिन पायलट अपनी ही सरकार को पेपर लीक मुद्दे पर घेर रहे हैं। सरकार की कार्रवाई को नाकाफी बताते हुए सरगना को पकड़ने की मांग कर रहे पायलट ने गहलोत पर भी कटाक्ष किया है। गहलोत की ओर से अधिकारियों और नेताओं को क्लीनचिट दिए जाने के बाद पायलट ने कहा पूछा कि तिजोरी में बंद पेपर छात्रों तक कैसे पहुंच गई, कैसी जादूगरी है? पायलट ने वसुंधरा सरकार में घोटाले के आरोप लगाए जाने की याद दिलाते हुए गहलोत से यह भी पूछा है कि सरकार में आने के बाद कार्रवाई क्यों नहीं की गई? इधर पायलट को कई बार 'गद्दार' कह चुके अशोक गहलोत ने अपने पूर्व डिप्टी को बड़ा कोरोना बता दिया है।

अपने 'सब्र' के लिए राहुल गांधी से तारीफ पा चुके पायलट ने लंबे समय बाद अपनी सरकार और इसके मुखिया गहलोत को निशाना बनाना शुरू किया है। राजस्थान की राजनीति पर करीब से निगाह रखने वाले राजनीतिक जानकारों का कहना है कि 2020 से ही वह पार्टी नेतृत्व खासकर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के आश्वासन की वजह से चुप रहे। तब समर्थक विधायकों के साथ बगावत करने वाले पायलट से पार्टी ने कुछ वादे किए थे जिन्हें अब तक पूरा नहीं किया गया है। पिछले दिनों गहलोत को पार्टी अध्यक्ष बनाकर प्रदेश की कमान पायलट को सौंपे जाने की योजना भी विफल रही। अब तक पार्टी गहलोत के खिलाफ कोई ऐक्शन नहीं ले पाई और पायलट को अब यह लगने लगा है कि उन्हें अपनी जंग खुद लड़नी पड़ेगी। बताया जा रहा है कि पायलट पार्टी को संदेश देना चाहते हैं कि जनता गहलोत के कामकाज से खुश नहीं है और अगले चुनाव से पहले उन्हें सीएम उम्मीदवार घोषित कर दिया जाए।

पायलट और गहलोत के बीच मतभेद और टकराव कोई नहीं बात नहीं है। 2018 से ही लगातार दोनों नेता एक दूसरे की टांग खींचने में लगे हुए हैं। लेकिन पार्टी अब तक समाधान का कोई फॉर्मूला तैयार नहीं कर पाई है। दोनों ही नेता राजस्थान की कमान अपने हाथ रखने की जिद्द पर अड़े हुए हैं। गहलोत ने जिस तरह राजस्थान के लिए पार्टी की कप्तानी कुर्बान कर दी उससे यह साफ हो गया है कि वह किसी भी कीमत पर पायलट के लिए रास्ता छोड़ने को तैयार नहीं हैं। उधर, पायलट को अब तक इस बात का मलाल है कि 2018 में पार्टी को जीत दिलाने के लिए उन्होंने जो मेहनत की उसका इनाम अब तक नहीं मिल पाया है। अब तक पार्टी के भरोसे बैठे रहे पायलट ने अब खुद ही मोर्चा खोल दिया है। ऐसे में माना जा रहा है कि अगले कुछ महीनों में राजस्थान कांग्रेस में घमासान तय है। पार्टी नेतृत्व ने हस्तक्षेप नहीं किया तो पार्टी के दो फाड़ हो जाने की भी आशंका है।

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