जहां एक ओर प्रदेश सरकार समाज के अंतिम व्यक्ति तक न्याय पहुंचने का दावा कर रही है वहीं कानपुर कमिश्नरेट की जनसुनवाई केंद्र में एक वृद्ध दिव्यांग आया और उसने अपने को दबंगों द्वारा पीड़ित किए जाने का मामला प्रथम पत्र के माध्यम से आपबीती सुनाई।
प्रार्थना पत्र ग्राम कुढ़नी निवासी दिव्यांग ओम ने दिया। पुलिस आयुक्त कार्यालय प्रार्थना पत्र देकर संबंधित थाने के द्वारा मदद एवं विधिक कार्यवाही का भरोसा दिया परन्तु दिव्यांगो के लिए संवेदनहीन तब नजर आई जब दिव्यांग को घिसटते हुए गुहार लगाने आना पड़ा जब की सरकार दिव्यांगो के लिए अलग सुविधाएं उपलब्ध करने के लिए कटिबद्ध है। ध्यानदेने योग्य बात यह है कि सत्तर वर्षीय बुजुर्ग ओम जो दिव्यांग भी है वह अपने घर पुलिस कमिश्नर के ऑफिस तक तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट से आ गया होगा परंतु पुलिस ऑफिस के गेट से पुलिस ऑफिस आयुक्त के दफ्तर तक जाने की तकरीबन दो सौ मीटर की दूरी तय करने में लगा श्रम उस दबंग के द्वारा किए हुए प्रहार से कम पीड़ा देने वाले नहीं रहे होंगे।
क्या न्याय संगीता यह कहती है कि पीड़ित व्यक्ति को न्याय दिलाने वाले जिम्मेदार लोगों के पास आने में भी यदि पीड़ा का अनुभव होता है तो कैसा न्याय होना तो यह चाहिए ताकि कोई पुलिस कर्मी वृद्ध दिव्यांग को उसके गंतव्य तक पहुंचने के लिए कोई साधन की व्यवस्था कर देता।
फरियादी ने बताया कि थाना सांढ अंतर्गत कुढ़नी का निवासी है और वह पर वह लकड़ी की गुमटी रखा कर अपना एवं अपने परिवार का उदर पोषण करता है वहीं क्षेत्र के दबंग द्वारा की गई जबरन उगाही का पैसा ना दिए जाने पर प्रार्थी को बुरी तरह से पीटा जिससे उससे गंभीर चोट आई जिसकी सूचना क्षेत्रीय थाने पर देने पर उसे टरकाया गया विवश होकर वह पुलिस आयुक्त के दफ्तर आया है जहां से फिर उसे थाने के लिए रवाना कर दिया गया है।
पीड़ित ने बताया कि न्याय ना मिलने पर गांव से पलायन कर अपनी जान देने को विवश हो जाएगा। भले ही प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने विकलांग को दिव्यांग की संज्ञा से विभूषित किया हो परंतु जमीनी हकीकत तो आज भी वहीं है।जहां पहले थे ना तो कानून के बदलाव कोई उनकी किसी स्थिति को सुधार आपे ना ही समाज की नजर में उनके प्रति संवेदनशीलता में कोई परिवर्तन भी आया शासनादेश के बावजूद भी दिव्यांगो के लिए न तो सरकारी विभागों में व्हीलचेयर का प्रबंध हुआ ओर ना ही रैंप का निर्माण हो पाया।