सिखों के दसवें और अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी ऐसे वीर संत थे, जिनकी मिसाल दुनिया के इतिहास में कम ही मिलती है। उन्होंने मुगलों के जुल्म के सामने कभी भी घुटने नहीं टेके और खालसा पंथ की स्थापना की। उनका 358वां प्रकाशोत्सव मनाया जा रहा है।
40 दिनी प्रभात फेरी समाप्त
वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फतेह जैसे वाक्य गुरु गोविंद सिंह की वीरता को बयां करते हैं। 15वीं सदी में गुरु नानक ने सिख पंथ की स्थापना की। गोविंद सिंह जी के पिता गुरु तेग बहादुर भी इस पंथ के गुरु थे। आज वाराणसी में उनके प्रकाशोत्सव के उपलक्ष्य में चल रहे 40 दिनी प्रभातफेरी का रविवार को समापन हुआ। अलग-अलग इलाके से निकलीं प्रभातफेरियों का नीचीबाग गुरुद्वारा में स्वागत किया गया। वहीं गुरुद्वारा गुरुबाग में रागी जत्था ने सबद कीर्तन किया।
पांच प्यारों को कराया अमृतपान
सुखदेव सिंह ने कहा – गुरु गोबिंद सिंह जी का नेतृत्व सिख समुदाय के इतिहास में बहुत कुछ नया ले कर आया, जिनमें से एक खालसा पंथ की स्थापना मानी जाती है। खालसा पंथ की स्थापना गुरु गोबिन्द सिंह जी ने 1699 को बैसाखी वाले दिन आनंदपुर साहिब में की। इस दिन उन्होंने पांच प्यारों को अमृतपान करवा कर खालसा बनाया और फिर उन पांच प्यारों के हाथों से खुद भी अमृतपान किया।
5 ककार का जाने अर्थ
उन्होंने खालसा को पांच सिद्धांत दिए, जिन्हें 5 ककार कहा जाता है। पांच ककार का मतलब ‘क’ शब्द से शुरू होने वाली उन 5 चीजों से है, जिन्हें गुरु गोबिंद सिंह के सिद्धांतों के अनुसार सभी खालसा सिखों को धारण करना होता है। गुरु गोविंद सिंह ने सिखों के लिए पांच चीजें अनिवार्य की थीं- ‘केश’, ‘कड़ा’, ‘कृपाण’, ‘कंघा’ और ‘कच्छा’ इनके बिना खालसा वेश पूरा नहीं माना जाता।
रंग-बिरंगे फूलों से सजा दरबार
वाराणसी के गुरूबाग गुरूद्वारे में सुबह से भजन कीर्तन गूंज रहा है। पूरे गुरूद्वारे को फूलों से सजाया गया है। गुरूद्वारे में श्रद्धालु संगत में पहुंचकर गुरूजी का आशीर्वाद भी लिया। आज हजारों श्रद्धालुओं लंगर भी छकेंगे।