. ममता बनर्जी अगर INDIA गठबंधन की कैप्टन बनती है तो कई मायनों में सियासत में बदलाव देखने को मिलेंगे
इंडिया गठबंधन में अध्यक्ष पद को लेकर गतिरोध चल रहा है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो है. हाल ही में इन्होंने इंडिया की कमान संभालने की इच्छा जाहिर की है. वहीं इस पद की प्रबल दावेदार ममता बनर्जी मानी भी जा रही है. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि 4 बड़े राज्यों ने ममता का समर्थन किया है. ये चार राज्य हैं यूपी, बिहार, महाराष्ट्र और बंगाल. इन चारों राज्यों की बड़ी पार्टियों का ममता बनर्जी को खुला समर्थन मिल रहा है. इतना ही नहीं ममता के समर्थन में शरद पवार से लेकर लालू यादव तक और राम गोपाल यादव से संजय राउत तक ने बयान दिया है. ऐसे में ममता के अध्यक्ष बनने की अधिक संभावनाएं हैं.
क्यों बन सकती है ममता INDIA की कैप्टन ?
इंडिया गठबंधन की कमान ममता को मिलने की संभावनाओं के पीछे 3 बड़ी वजहें बताई जा रही हैं. पहली वजह ये है कि शरद पवार से लेकर लालू यादव तक का समर्थन ममता के साथ है. सीटों की लिहाज से यूपी, बिहार, महाराष्ट्र और बंगाल देश के 4 बड़े राज्य हैं. इन चारों ही राज्यों की बड़ी पार्टियों ने ममता का समर्थन कर दिया है. दूसरी वजह आंध्र प्रदेश की विपक्षी पार्टी वाईएसआर का समर्थन ममता को है. तीसरी वजह ममता का महिला नेता होना है. इंडिया गठबंधन के भीतर ममता फायरब्रांड महिला नेता है.
ममता के तीखे तेवर के चलते उनका नाम आगे
बंगाल में जब ममता बनर्जी ने खुद की तृणमूल कांग्रेस बनाई, तो ममता ने व्यक्ति छोड़ जनहित के मुद्दों पर विरोध प्रदर्शन करने शुरू किए. उस समय कोलकाता के धर्मशाला को ममता ने अपने विरोध का केंद्र बनाया. हर बड़े मुद्दे को लेकर ममता धर्मशाला में प्रदर्शन करने पहुंच जाया करती थीं. ममता के वो तेवर आज भी पूरे जोश ओ खरोश से बरकरार हैं. संसद में जब कांग्रेस द्वारा उद्योगपति गौतम अडानी के मुद्दे को तरजीह दी गई तो ममता ने इस मुद्दे से खुद को अलग कर लिया. इस पर ममता का कहना था कि जनहित के मुद्दे उठाए जाने चाहिए, जिससे केंद्र की सरकार आसानी से बैकफुट पर आ सके. वर्तमान समय में किसान आंदोलन, महंगाई, ट्रेन यात्रा, स्वास्थ्य सुविधा जैसे कई मसले हैं जिस पर सांसद बहस करना चाहते हैं. ममता को अगर इंडिया की कमान मिलती है तो संसद के बहस के केंद्र में ये मुद्दे फिर से उठ सकते हैं.
राहुल गांधी के सपने पर फिर सकता है पानी
हाल फिलहाल में इंडिया गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस है. इसी वजह से नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी राहुल गांधी के पास है. वहीं राहुल अभी प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार भी हैं. मगर यदि ममता को विपक्ष की कुर्सी मिल जाती है तो राहुल की दावेदारी पर संकट के बादल मंडरा सकते हैं. साल 1989 में विपक्ष की कमान संभालने वाले वीपी सिंह कम सीट होने के बावजूद देश के प्रधानमंत्री बनाए गए थे. ममता के समर्थक दबी जुबान में उन्हें पीएम पद के रूप में प्रोजेक्ट भी करते रहे हैं. इसको लेकर बंगाल में तृणमूल समर्थकों ने एक गाना हवाई चोटी दिल्ली जावे (हवाई चप्पल दिल्ली जाएगा) भी बनाया है. ममता के दिल्ली आने पर उनकी दावेदारी और भी ज्यादा मजबूत हो जाएगी.
INDIA गठबंधन में हो सकती है नए दलों की एंट्री
अभी देश की 26 विपक्षी पार्टियां इंडिया गठबंधन में शामिल है. इसके अलावा तेलंगाना की बीआरएस, हरियाणा की इनेलो और आंध्र की वाईएसआर का रुख भी एनडीए विरोधी ही है. वाईएसआर ने ममता की दावेदारी को लेकर सकारात्मक रुख दिखाया है. इनेलो पहले भी इंडिया में शामिल होना चाहती थी, लेकिन कांग्रेस की वजह से ये संभव नहीं हो सका. केसीआर की बीआरएस भी एक वक्त बीजेपी विरोधी मोर्चा बनाने में एक्टिव थीं. ऐसे में कहा जा रहा है कि अगर ममता को इंडिया की कमान मिलती हैं तो गठबंधन के भीतर कुछ नए दलों की एंट्री संभव हो सकती है.
जब जाति आधारित गणना पर हुआ टकराव
लोकसभा चुनाव के बाद से ही कांग्रेस जाति आधारित गणना की मांग को लेकर मुखर रही है. हालांकि कांग्रेस की इस मांग को ममता ज्यादा तवज्जो नहीं देना चाहती हैं. इसको लेकर साल 2023 में मुंबई में हुई बैठक में इंडिया गठबंधन प्रस्ताव भी पास करना चाहती थी, लेकिन ममता ने इसका कड़ा विरोध किया था. कहा जा रहा है कि अब अगर ममता को कमान मिलती है तो नए सिरे मुद्दे तय किए जाएंगे. जिसके बाद जातीय जनगणना का मुद्दा ठंडे बस्ते में जाने की पूरी संभावनाएं
3 पार्टियों को नेशनल पार्टी का है दर्जा
इंडिया गठबंधन में 3 पार्टी कांग्रेस, सीपीएम और आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय दल का दर्जा मिला हुआ है. ममता बनर्जी की पार्टी एक क्षेत्रीय पार्टी है. अगर इंडिया की कमान ममता को मिलती है तो देश में ये पहली बार होगा, जब किसी क्षेत्रीय नेता के अधीन तीन-तीन राष्ट्रीय पार्टियों के प्रमुख काम करेंगे. देखा जाए तो देश के इतिहास में अब तक किसी भी गठबंधन की कमान क्षेत्रीय पार्टी के नेताओं को नहीं मिली है. एनडीए गठन के वक्त से लेकर अब तक बीजेपी के पास ही इसकी कमान रही है. जब यूपीए का गठन हुआ था, तब भी कांग्रेस के पास ही इसकी कमान थी.