.मौसम है समय-समय पर बदलता रहता है. साथ ही गर्मी और ठंड से बचाव तो इंसान अपने तरीकों से कर ही सकता है. मगर हाल-फिलहाल देश की राजधानी दिल्ली और इसके आस-पास के इलाकों की हालत ऐसी है कि अगर कोई स्वस्थ इंसान भी यहां पहुंच जाए तो कुछ ही दिनों में उसे बीमार पड़ने से कोई नहीं रोक सकता है.
कभी भीषण लू के थपेड़े, तो कभी हांड कपाऊं ठंड से तो पूरा देश दो चार होता रहता है. किसी शहर में ज्यादा गर्मी या ठंड तो किसी में कम. ये तो मौसम है समय-समय पर बदलता रहता है. साथ ही गर्मी और ठंड से बचाव तो इंसान अपने तरीकों से कर ही सकता है. मगर हाल-फिलहाल देश की राजधानी दिल्ली और इसके आस-पास के इलाकों की हालत ऐसी है कि अगर कोई स्वस्थ इंसान भी यहां पहुंच जाए तो कुछ ही दिनों में उसे बीमार पड़ने से कोई नहीं रोक सकता है. आप सोच रहे होंगे कि हम ऐसा क्यों कह रहे हैं क्या दिल्ली में कोई वायरस फैला है क्या? तो हमारा इसका जवाब हां में देना बिल्कुल गलत नहीं होगा क्योंकि दिल्ली में प्रदूषण का जो स्तर है. वो लोगों पर एक वायरस की तरह ही हमला कर रहा है.
खांसी और सांस की बीमारियों से परेशान रहवासी !
दिल्ली के लोग खांसी और सांस की बीमारियों से जूझने को मजबूर हो रहे हैं. वहीं इस बढ़ते प्रदूषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक चिंतित है. साथ ही इससे निपटने के उपायों पर अपनी पैनी नजर भी बनाए हुए है. इसको लेकर बच्चों को इससे बचाने के लिए स्कूल बंद कर दिए हैं, कई दफ्तरों में लोग वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं. इतना ही नहीं प्रदूषण के बढ़ते स्तर की गंभीरता पर सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली प्राधिकरण को फटकार तक लगाई है. मगर लगता है कि प्राधिकरण के जिम्मेदार अफसरों के कानों में जूं तक नहीं रेंग रही है. अब आप कहेंगे कि क्या केवल दिल्ली सरकार की ही पूरी जिम्मेदारी है इस प्रदूषण से निपटने की. केंद्र सरकार कुछ नहीं करेगी तो हम आपको बता दें कि एक केंद्र सरकार ने इस प्रदूषण से निपटने के लिए भारी भरकम बजट दिया है. मगर नोएडा प्राधिकरण के जिम्मेदार और होनहार अधिकारी इस रकम का उपयोग नहीं कर सके हैं.
RTI में हुआ चौंकाने वाला खुलासा
इस बात का खुलासा तब हुआ जब नोएडा के सेक्टर 77 के निवासी अमित गुप्ता ने आरटीआई दाखिल कर इस सवाल का जवाब मांगा. अमित गुप्ता द्वारा आरटीआई के तहत प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड से ये जानकारी मांगी थी कि आखिर बीते तीन सालों में केंद्र सरकार ने बढ़ती प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए कितना बजट दिया और उसमें से कितना खर्च किया गया. जिसका जवाब आप सभी लोगों को चौंका देगा. अमित गुप्ता द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में बोर्ड ने बताया कि नोएडा प्राधिकरण को बीते तीन सालों में प्रदूषण पर रोकथाम के लिए कुल 30 करोड़ 89 लाख रुपये केंद्र की ओर से दिए गए थे. जिनमें से प्राधिकरण अब तक महज 3 करोड़ 44 लाख रुपये खर्च कर सका है. इसके साथ ही इस खर्च की गई रकम से नोएडा प्राधिकरण ने 4 मैकेनिकल स्वीपिंग मशीनें और एंटी स्मॉग गन खरीदे हैं. वहीं शेष रकम का इस्तेमाल किया जाना अभी बाकी है.
सरकार का दिया बजट कहां गया ?
आरटीआई रिपोर्ट के खुलासे के बाद अब ये सवाल उठता है कि प्राधिकरण के वो जिम्मेदार अधिकारी जिनके कंधों पर शहर की समस्याओं से लेकर समाधानों तक का बोझ है. वो अब तक इस रकम का इस्तेमाल क्यों कर सके हैं. देखा जाए तो केंद्र की ओर से दी गई रकम का 10 फीसदी हिस्सा ही प्राधिकरण कर सका है. जिसमें से 90 फीसदी रकम अभी भी प्राधिकरण के पास है और प्राधिकरण के जिम्मेदारों को इसके इस्तेमाल का सही तरीका ही नहीं पता है. आरटीआई के इस खुलासे के बाद कई बातों से पर्दा हट गया है. जहां एक ओर केंद्र सरकार की देशवासियों की सुविधाओं को लेकर नीयत साफ हो गई है. तो एक सवाल भी खड़ा हो गया है कि आखिर प्राधिकरण के पढ़े लिखे जिम्मेदार अधिकारियों को जब ये ही समझ नहीं आ रहा है कि वो प्रदेश की जनता की समस्या को कैसे सुलझाएं. ना तो प्राधिकरण के पास लोगों की समस्या का समाधान है और ना ही इस समस्या से निपटने का कोई एक्शन प्लान मौजूद है. प्राधिकरण की लापरवाही का खामियाजा भुगत रही है तो वो है सिर्फ जनता.