राजनीति के गलियारों में इस समय जिस बात की चर्चा जोरों पर है. वो है विधानसभा उपचुनावों में बीजेपी की जोरदार वापसी की. विधानसभा उपचुनावों में मिली जीत के बाद जहां एक ओर बीजेपी के नेताओं से लेकर कार्यकर्ता तक सभी लोग जश्न मना रहे है. वहीं बीजेपी की जीत विपक्षी खेमे के गले नहीं उतर रही है.
साल 2019 में 303 सीटों पर अपना भगवा झंडा लहराने वाली बीजेपी लोकसभा चुनाव 2024 में औंधे मुंह गिरी. उस वक्त किसी को भी इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि बीजेपी महज 6 महीनों में ही जोरदार वापसी करेगी. बात करें अगर 2024 के लोकसभा चुनावों की तो हर तरफ 400 पार का नारा देने वाली बीजेपी महज 240 सीटों पर ही सिमट कर रह जाएगी इस बात का खुद बीजेपी को भी अंदाजा नहीं था. जहां 2019 में बीजेपी ने 303 का लक्ष्य हासिल कर लिया था तो इस लिहाज से ये बिल्कुल भी नामुमकिन था. मगर इंडिया गठबंधन और विपक्षी खेमे का पीडीए फॉर्मूला बीजेपी पर भारी पर गया और बीजेपी को लोकसभा चुनावों में करारी हार का सामना करना पड़ा. मगर 2024 लोकसभा चुनावों की हार से सबक लेकर बीजेपी ने अपनी नींव को एक बार फिर मजबूती दी और महाराष्ट्र से लेकर यूपी तक और हरियाणा से लेकर राजस्थान तक बीजेपी का ही झंडा लहराता हुआ नजर आया.
साल 2019 में की थी 23 सीटों पर जीत दर्ज
महाराष्ट्र में साल 2019 के लोकसभा चुनावों में 23 सीटों पर जीत दर्ज की थी. जो कि 2024 के लोकसभा चुनावों में मात्र 9 सीटों पर सिमट कर रह गई. महाराष्ट्र के नतीजों ने बीजेपी को चौंका दिया था. मगर इन परिणामों के द्वारा जनता ने पार्टी को साफ तौर पर संदेश दे दिया था कि संविधान में बदलाव, जाति जनगणना के मुद्दे के अलावा मराठा आरक्षण का मुद्दा भी पार्टी की हार का सबब बना है. यहीं नहीं शिवसेना और एनसीपी के बीच आई दरार को लेकर भी महाराष्ट्र की जनता में गुस्सा था. जिसके चलते बीजेपी सहित एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी को महाराष्ट्र की जनता ने तगड़ा सबक दे दिया था. 2024 के नतीजों के बाद शिवसेना (उद्धव) के नेता संजय राउत से लेकर कांग्रेस के नाना पटोले सभी बीजेपी के गठबंधन महायुति को विधानसभा चुनाव धराशाई करने की चर्चा हर जगह कर रहे थे. मगर दूसरी ओर बीजेपी महाराष्ट्र में अपने खराब प्रदर्शन को लेकर शॉक्ड थी. इतना ही नहीं राज्य में महायुति के सेनापति के तौर पर उभरे एकनाथ शिंदे की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई थी. एक तरफ तो एकनाथ शिंदे और अजित पवार के सामने ये साबित करने की कड़ी चुनौती थी कि असली शिवसेना और एनसीपी उनकी पार्टी ही है. वहीं दूसरी तरफ राज्य में बीजेपी को अपना खोया जनाधार पाने की सबसे बड़ी चिंता थी. बीजेपी जान गई थी महाराष्ट्र की हार केंद्र सरकार की मजबूती पर भी सीधा असर डालेगी.
232 सीटों पर जीत का बिगुल बजाया
महाराष्ट्र में हार से सबक लेकर बीजेपी अपनी कमियों के साथ ही आगे आने वाले चुनावों के लिए वोटरों को जोड़ने की रणनीति के साथ विधानसभा चुनावों से पहले ही अपनी पुरानी नींव को मजबूती देने मैदान में उतर चुकी थी. जिसका नतीजा भी बीजेपी को सफलता के रूप में मिला. विधानसभा चुनावों में 149 सीटों पर मैदान में उतरी बीजेपी 132 सीट पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही. बीजेपी की इस कोशिश में शिवसेना (शिंदे) और अजित पवार की एनसीपी ने 57 और 41 विधानसभा सीटें जीतकर इतिहास रच दिया. असली शिवसेना और असली एनसीपी की जंग में एकनाथ शिंदे और अजित पवार दोनों सफलता हासिल की. महायुति 288 में से 232 सीटों पर जीत का बिगुल बजाने में कामयाब हुई.
विधानसभा चुनाव में दिखा गजब का स्ट्राइक रेट
लोकसभा चुनावों में 14 सीटें कम जीतने वाली बीजेपी विधानसभा चुनाव में 90 फीसदी स्ट्राइक रेट से सीटें जीतकर कांग्रेस को रौंदती हुई नजर आई. ठीक यही हाल अक्टूबर महीने में हरियाणा में भी देखने को मिला था. जहां कांग्रेस पार्टी इस बात को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त थी कि लोकसभा चुनावों में 5 सीटों पर परास्त होने वाली बीजेपी हरियाणा विधानसभा चुनावों में औंधे मुंह गिरेगी. मगर कांग्रेस के इन अरमानों पर पानी फिर गया और बीजेपी राज्य में तीसरी बार सरकार बनाने की जुगत में कामयाब हो गई. यही नहीं राजस्थान के पिछले दो लोकसभा चुनावों में शत प्रतिशत यानी की 25 की 25 सीटें जीतने वाली बीजेपी 14 पर सिमट कर रह गई थी. इसलिए राजस्थान के उपचुनाव में बीजेपी ने 7 में से पांच सीटों पर जीत दर्ज करके एक बार फिर राजस्थान में अपनी मजबूत पकड़ का नमूना पेश कर दिया. जहां कांग्रेस लोकसभा चुनावों में मिली जीत को विधानसभा चुनावों में भुनाने की कोशिश में नाकाम साबित हुई वहीं बीजेपी ने एक बार फिर अपने खोए जनाधार को वापस हासिल करने में कामयाबी हासिल कर ली.
ओबीसी वोटरों को किया जोड़ने का काम
महाराष्ट्र में बीजेपी ने ओबीसी वोटरों को जोरदार तरीके से एकजुट करने का काम किया. वहीं लोकसभा चुनाव में संविधान बदलने के नैरेटिव को बीजेपी ध्वस्त करने में कामयाबी हासिल की. विदर्भ में ओबीसी की छोटी-छोटी जातियों का कॉरपोरेशन बनाकर बीजेपी इन्हें साधने में सफल हुई. एक तरफ बीजेपी छोटी-छोटी जातियों को एकजुट कर रही थी और मराठा आरक्षण के विरोध में ये जातियां गोल बंद हो रही थीं. वहीं कांग्रेस,शिवसेना (उद्धव) और एनसीपी (शरद) सीटों के बंटवारे में आखिर तक उलझे रहे. महाअघाड़ी में सीएम पद को लेकर जोरदार भिड़ंत दिखाई दी. वहीं ‘एक हैं तो सेफ हैं’ और ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ जैसे नारों ने हिंदू वोटों की गोलबंदी करने में कारगर हुई. इन कारणों से ही बीजेपी खोए हुए जनाधार को जोरदार तरीके से वापस पाकर अपने विरोधियों को करारा जवाब दे दिया. हरियाणा में भी बीजेपी छोटी जातियों को गोल बंद रखने में सफल रही. इसलिए कैंपेन की खासियत और संघ को साथ लेकर प्रचार में जुटी बीजेपी को तीसरी बार सरकार बनाने में कामयाबी मिली.