एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद से लगातार मुख्यमंत्री फेस को लेकर चुप्पी साधे हुए है, जिसने सियासी गलियारों में खलबली मचाई हुई है, सियासी जानकारों की मानें तो वो कुछ विभाग को लेकर अड़े हुए है
न तुम हो, न हम कम है, ये बात इन दिनों महाराष्ट्र की सियासत पर बिल्कुल फिट बैठती है, क्योंकि करीब एक हफ्ता बीत चुका है अभी तक महाराष्ट्र की सियासत का ‘सुल्तान’ तय नहीं हो पाया, एक ओर जहां देवेंद्र फड़णवीस को CM बनाने की बात सामने आ रही है तो वहीं दूसरी ओर पूर्व मुख्यमंत्री एक नाथ शिंदे को लेकर महाराष्ट्र से दिल्ली तक मंथन चल रहा है, लेकिन महायुति गठबंधन मुख्यमंत्री का चेहरा तय नहीं कर पा रहा है. माना जा रहा है कि बीजेपी की ओर से देवेंद्र फडणवीस सबसे प्रमुख दावेदार हैं. अजित पवार भी इस पर मान गए हैं, लेकिन एकनाथ शिंदे इस मामले में नाराज बताए जा रहे हैं. दरअसल एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद से लगातार मुख्यमंत्री फेस को लेकर चुप्पी साधे हुए है, जिसने सियासी गलियारों में खलबली मचाई हुई है, सियासी जानकारों की मानें तो वो कुछ विभाग को लेकर अड़े हुए है जबकि बीजेपी वो विभाग अपने पास रखना चाहती है जिसने मुंबई से दिल्ली तक टेंशन बढ़ाई हुई है क्योंकि अगर बीजेपी को महाराष्ट्र में सरकार बनानी है तो एकनाथ शिंदे को साथ लेकर चलना होगा. जिसके पीछे की वजह भी है
BJP को सता रहा शिंदे के दूर होने का डर
एक्सपर्ट्स की मानें तो एकनाथशिंदे महायुति में मराठा समुदाय का सबसे मजबूत चेहरा माने जाते हैं. मराठा आरक्षण के मुद्दे को शिंदे ने जिस तरह संभाला है, उससे उनका कद और बढ़ गया है. मराठों के बीच एकनाथ शिंदे की अच्छी लोकप्रियता है जो किसी से भी छिपी नहीं है. बीजेपी को डर है कि शिंदे की नाराजगी से मराठा समुदाय भी दूर खिसक सकता है, जिसका राज्य की करीब 115 विधानसभा सीटों पर बड़ा हस्तक्षेप है. शिंदे के साथ से मराठा आरक्षण का मुद्दा भी सधा हुआ है. वहीं अजित पवार जब महायुति में आए थे तो उन्होंने वित्त मंत्रालय जैसा अहम विभाग अपने पास रखा था. हालिया विधानसभा चुनावों में पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी NCP के प्रदर्शन ने असली-नकली पार्टी की जंग भी जीत ली है. ऐसे में शिंदे को साथ रखने से बीजेपी महायुति के भीतर अजित के बढ़ते प्रभाव को नियंत्रित करना चाहती है. अगर शिंदे अलग होते हैं तो सरकार पर पवार का नियंत्रण बढ़ सकता है.
क्यों एकनाथ शिंदे को डिप्टी CM नहीं बन रहे ?
इसके साथ ही शिंदे के अलग होने से विपक्ष को महायुति को घेरने का मुद्दा मिल जाएगा. विधानसभा चुनाव में 57 सीटें जीतने के बाद एक तरह से शिंदे गुट ही असली शिवसेना है. ऐसे में शिंदे अलग हुए तो उद्धव गुट बीजेपी पर सत्ता के लिए शिंदे का इस्तेमाल करने का आरोप लगा सकता है. यहां तक की महाराष्ट्र में तोड़-फोड़ की राजनीति भी शुरू हो सकती है. साथ ही केंद्र में बीजेपी के नेतृत्व वाली NDA सरकार में शिंदे की शिवसेना के 7 सांसद हैं लोकसभा में बहुमत का आंकड़ा 272 है और फिलहाल NDA में 292 सांसद हैं. अगर शिंदे नाराज होकर सरकार से समर्थन वापस ले लेते हैं तो केंद्र सरकार कमजोर हो सकती है. हालांकि, इसकी संभावना बेहद कम है, लेकिन अगर ऐसा हुआ तो बीजेपी को नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के पलटी मारने की चिंता सता सकती है. लेकिन सवाल है कि आखिर क्यों एकनाथ शिंदे को बीजेपी डिप्टी CM नहीं बना रही है
महाराष्ट्र की सियासत में ‘बेटे’ की एंट्री की बात
महाराष्ट्र की राजनीति की नब्ज पकड़ने वालों की मानें तो एकनाथ शिंदे ने अपने बेटे श्रीकांत शिंदे को डिप्टी CM बनाने की मांग की है, जिस पर बीजेपी सहमत नहीं है. श्रीकांत के पास बड़े पद के लिए राजनीतिक अनुभव नहीं है. इसके अलावा बीजेपी को डर है कि श्रीकांत को उपमुख्यमंत्री बनाने से पार्टी पर भाई-भतीजावाद के आरोप लग सकते हैं. ये भी कहा जा रहा है कि ऐसा करने से शिंदे के गुट के कई वरिष्ठ नेता नाराज हो सकते हैं. दिल्ली से आई खबरों की मानें तो बीजेपी शिंदे को उपमुख्यमंत्री पद दे रही है, लेकिन वे इस पर राजी नहीं है. शिंदे का मानना है कि मुख्यमंत्री के बाद उपमुख्यमंत्री का पद लेना एक तरह की गिरावट जैसा है. उन्होंने बेटे श्रीकांत के लिए ये पद मांगा है, लेकिन इस पर बीजेपी राजी नहीं है. यहां तक की कथित तौर पर वे गृह, शहरी विकास और सार्वजनिक कार्य जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय मांगे हैं, जिस पर अभी तक बीजेपी ने कोई जवाब नहीं दिया है. लेकिन बीजेपी अगर कोई फॉर्मूला तैयार करती है और उसे लागू करना चाहती है तो एकनाथ शिंदे के पास उसे न मानने का कोई विकल्प नहीं है. इसकी 2 बड़ी वजहे हैं. पहली वजह महाराष्ट्र विधानसभा का नंबर और दूसरी वजह गठबंधन का स्पेस है. अब आगे क्या होता है ये देखने वाली बात होगी